पत्थरों के इस शहर में आइने-सा आदमी,
ढूँढने निकला था खुद को चूर होता आदमी।
चिमनियाँ थीं, हादसे थे, शोर था काफी मगर,
इस शहर की भीड़ में कोई नहीं था आदमी।
तन जलेगा, मन जलेगा, घर जलेगा बाद में,
रोशनी के वास्ते पहले जलेगा आदमी।
दोस्तों में, रास्तों में, भीड़ में, बाज़ार में,
हर तरफ खंजर छिपे हैं, क्या करेगा आदमी।
इस घनेरी धूप में है प्यास का मारा हुआ,
पाँव में छाले पड़े हैं, फिर भी चलता आदमी।
About Author
पत्रकारिता (वर्ष 1986 से)। ‘दैनिक भास्कर’, ‘स्वतंत्र भारत’ (कानपुर/लखनऊ) आदि में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य।
विधाएं : नई कविता, गीत, गजल, दोहे, मुक्तक, कहानी, व्यंग्य, निबंध, रिपोर्ताज और बाल साहित्य। रचनाएं देश-विदेश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं,प्रमुख अंतरजाल पत्रिकाओं में प्रकाशित। दूरदर्शन/आकाशवाणी से प्रसारण भी।
प्रकाशित कृतियां:
-‘सरहदें’ (काव्य संग्रह)
-‘पीढ़ी का दर्द’ (काव्य संग्रह)
-‘ईष्र्या’ (लघुकथा संग्रह)
-‘शेरनी मां’ (बाल कथा संग्रह)
–‘कविता अनवरत-1’.‘कविता अनवरत-2’,कविता अभिराम-1, समकालीन कविता-2, आधुनिक दोहा, लघुकथा अनवरत ‘कानपुर के समकालीन कवि’ सहित कई संकलनों में रचनाएँ संकलित।
-विशेष: काव्यकृति ‘पीढ़ी का दर्द’ के लिए उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा पुरस्कृत।
-साहित्य/पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘गणेश शंकर विद्यार्थी अतिविशिष्ट सम्मान’।
संपादन: ‘काव्ययुग’ ई-पत्रिका
संप्रति: ‘आज’ (हिन्दी दैनिक), कानपुर में कार्यरत।