- आज से लगभग चार सौ वर्ष पूर्व रहीम जी ने एक दोहा रचा था, जो कि इस प्रकार है —
रहिमन पानी राखिए; बिन पानी सब सून।
पानी गए ना उबरे; मोती, मानस, चून।
रहीम जी की रचना यह प्रतिपादित करती है, कि बिन पानी मनुष्य का अस्तित्व नही है। पानी के जतन को भी उन्होंने महत्वपूर्ण कार्य बताया है। इस बात का संज्ञान उन्हें भी था कि भविष्य में जल के संचयन से ही मानव जाति का कल्याण संभव है वरना मनुष्य को बूंद-बूंद के लिए तरसना पड़ सकता है। अर्थशास्त्र में हमने पढ़ा है; की वस्तु की मांग बढ़ती है तो उसकी आपूर्ति में कमी आना, उसके दाम में वृद्धि होना स्वाभाविक है परंतु जल यह एक ऐसी वस्तु है जिसका निर्माण वर्तमान में मनुष्य के हाथों में नहीं है यह प्रकृति का संपूर्ण जीवित प्राणियों के लिए खूबसूरत तोहफा है, परंतु इस तोहफे को संजो कर रखने में बुद्धिमान मनुष्य मूर्ख प्रतीत होता है। वर्तमान में पृथ्वी पर 700 करोड़ से भी अधिक मनुष्यों का वास है और यह बढ़ती आबादी शहरीकरण का मुख्य कारण है। फैलते कंक्रीट के जंगल वर्षा के पानी के संचयन भूजल में कमी का मुख्य कारण है। यदि भारत की बात की जाए तो भारत की तकरीबन 30 करोड़ आबादी शहरों में रहती है; दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, चेन्नई यह पानी की समस्या से जूझने वाले प्रमुख शहर है। इन शहरों में होने वाले निर्माण कार्य के कारण बरसात का पानी भूमि में जाने के बजाय दूषित होकर नालों में बह जाता है; जिससे भू-जल संकट मुंह बाए खड़ा हो गया है। 70% भारतीय आबादी को पीने व खाना पकाने का स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं है।
भारत एक मानसूनी हवा वाला देश है , जहां पर उत्तरी क्षेत्र में नदियां बारहमासी है। उत्तरी भारत में जल की समस्या बहुत अधिक विकराल नहीं है परंतु दक्कन भारत और दक्षिण में जल की उपलब्धता के लिए लोग पारंपरिक स्रोतों पर निर्भर हैं, जिसमें वर्षा मुख्य है। वर्ष में 4 माह होने वाली वर्षा के जल का संचयन, झीलों, तालाबों में किया जाता है। लेकिन अब यह बढ़ती आवश्यकता की पूर्ति के लिए कम पड़ने लगे हैं। उदाहरण के तौर पर चेन्नई में पीने के पानी के लिए वहां उपलब्ध कई झिलों का प्रयोग किया जाता है परंतु साल 2018 में जहां झिलों में पानी भरा हुआ था जो कि अब लगभग सूख चुकी हैं।
भारत में जल संकट से पार पाने में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी एक बड़ी बाधा बन कर खड़ी हुई है ; भारतीय परिक्षेत्र में ठीक-ठाक वर्षा तो हो जाती है परंतु स्थिति ऐसी होती है , कि एक ओर जहां एक ही समय में बाढ़ आ जाती है तो वहीं देश के कई इलाकों में सूखा पड़ा रहता है। यही स्थिति आजादी के 70 सालों बाद भी बनी हुई है। हम खेती से लेकर पेयजल तक के लिए वर्षा पर ही निर्भर है। इसी वर्ष 2019 में पश्चिमी भारत में भारी भरकम वर्षा हुई परिणामतः मुंबई व उसके आसपास के इलाकों में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई वहीं दूसरी ओर दक्षिण पूर्व इलाकों में सूखे के हालात हैं। यह स्थिति प्रदर्शित करती है कि, किस प्रकार राष्ट्र में जल प्रबंधन को लेकर उचित कार्य नहीं किए गए।
कहते हैं आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। स्वच्छ जल की आवश्यकता ने पानी को साफ करने वाले यंत्रों का आविष्कार किया परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि हमने स्वच्छ जल की समस्या का समाधान ढूंढ लिया यह तो हमने अपनी सुविधा के लिए एक काम चलाऊ उपाय ढूंढा है। इसका दुष्परिणाम यह है कि हमारे शरीर में अनैसर्गिक रूप से रसायन इन फिल्टरों के माध्यम से पहुंच जाते हैं जो कि कैंसर जैसी समस्याओं को भी जन्म दे सकते हैं।
भारत सरकार ने जल संकट से निपटने के लिए वर्तमान में नदियों को आपस में नहरों के द्वारा जोड़ने का कार्य शुरू किया है। इस मुहिम में उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश की 2 नदियों केन और बेतवा को आपस में जोड़ने का कार्य चल रहा है जिससे दक्षिण उत्तर प्रदेश व सूखाग्रस्त बुंदेलखंड में पानी की समस्या का समाधान होगा और साथ ही साथ बाढ़ की स्थिति में नदी के पानी को समग्र रूप से पूरे क्षेत्र में फैलाया जा सकता है। दक्कन के पठार व दक्षिणी भारत के हिस्सों में जहां नदियां बारहमासी नहीं हैं और भू जल की कमी है इन इलाकों में नदियों को जोड़ने से सूखे व बाढ़ दोनों ही समस्याओं से निजात मिलेगी। 2019 में बनी नई सरकार ने पेयजल की उपलब्धता को स्वच्छ भारत अभियान की ही तरह एक बड़े अभियान के रूप में चलाने के कार्य में जुटी है। जल की समस्या का समाधान होने से खेती में वृद्धि होगी जिससे जीडीपी भी बढ़ेगा जो देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करेगा। इस समस्या का समाधान कुछ दिनों में नहीं किया जा सकता यदि हमें भविष्य के लिए जल संचयन करना है तो विकास कार्य इस प्रकार हो जो प्रकृति को भी गले लगा कर किया जाए जिसमें प्रकृति को अपने अनुरूप कार्य करने दिया जाए क्योंकि हम यदि प्रकृति को कुछ देंगे तो बदले में कई गुना प्रकृति संपूर्ण मानव जाति को वापस देगी। जल की उपलब्धता भविष्य में किस प्रकार होगी यह हम सब पर भी निर्भर करता है कि हम उसका संचयन किस रूप में करते हैं सरकारें तो अपने हिसाब से कार्य करती हैं परंतु हमें भी सभी नागरिकों को स्वयं की तरफ से इसे बचाना चाहिए। जितनी आवश्यकता हो उतने ही पानी का प्रयोग करें ताकि भविष्य में आने वाली पीढ़ी को साफ जल मुहैया हो सके जिस प्रकार हमारे पूर्वजों ने हमें स्वच्छ जल दिया ठीक उसी प्रकार हमारा भी दायित्व है कि आने वाली पीढ़ी को साफ पानी दें।