मैं स्पष्ट कर देना चाहती हूं, कि, अधोलिखित विचार किसी व्यक्ति, राजनैतिक पार्टी, मंत्री या संस्था विशेष से जुड़े हुए नहीं हैं, इस संदर्भ में मैं पूर्णत: न्यूट्रल हूं। मैं अपने विचार वर्तमान प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी के… Read More

मैं स्पष्ट कर देना चाहती हूं, कि, अधोलिखित विचार किसी व्यक्ति, राजनैतिक पार्टी, मंत्री या संस्था विशेष से जुड़े हुए नहीं हैं, इस संदर्भ में मैं पूर्णत: न्यूट्रल हूं। मैं अपने विचार वर्तमान प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी के… Read More
इस बार ईदुल अजहा पर कश्मीर की शांति देखकर मन प्रसन्न है। संभवतः यह पिछले बीस वर्षों की यह पहली ईद होगी, जिसमें सर्वत्र शांति है और देशद्रोही ताक़तों के हौसले पस्त हैं। ऐसे में मुझे लगता है कि कश्मीर… Read More
“दाल रोटी खाओ, प्रभु के गुण गाओ” बहुत बहुत वर्षों से ये वाक्य दोहरा कर सो जाने वाले भारतीयों का ये कहना अब नयी और मध्य वय की पीढ़ी को रास नहीं आ रहा है। दाल की वैसे डाल नहीं… Read More
भारत जैसे बहुभाषी और बहु-सांस्कृतिक परंपरा वाले देश में सिनेमा की व्यापक पहुंच ने इसे लोगों के मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम बना दिया है और इसमें हिंदी भाषा का व्यापक योगदान है। 1931 में पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’… Read More
गाँव के लगभग दस लोगों से पूछने और पूरे गाँव की तंग गलियों में भटकने के बाद आखिरकार वह खपरैल का मकान मिल ही गया. घर के ठीक सामने ही एक बूढी औरत अलाव जलाने के लिए पुआल में थोड़ी… Read More
तुझसे दूर भला कैसे जाऊं मैंदिल का हाल किसे सुनाऊं मैं तू हर्फ़ दर हर्फ़ याद है मुझेतुझे भला किस तरह भुलाऊँ मैं दिल में बस तेरी ही तस्वीर लगी हैकिसी और को इसमें कैसे बसाऊं मैं तुझे खोने का… Read More
पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का अनायास ही 67 वर्ष की उम्र में 6 अगस्त 2019 को देहांत हो गया। उन्होने 10 दिसंबर 2016 में एम्स में किडनी ट्रांसप्लांट कराया था। जिसके बाद वह स्वास्थ्य को लेकर सजग थीं। दिल… Read More
वैश्विक संदर्भों में अनुवाद की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। वर्तमान में वैश्विक सरोकारों के चलते अनुवाद एक आवश्यक सम्प्रेषण माध्यम बन चुका है। दरअसल दो अलग देशों, भिन्न संस्कृतियों, दो समुदायों के दो अलग भाषी लोगों के बीच… Read More
जब कभी कला विशेषकर सिनेमा के बारे में बात की जाती है तो कुछ लोग ऐसा कहते है कि सिनेमा का अर्थव्यवस्था से कोई लेना देना नहीं है। हालांकि जब हम सिनेमा की गहन समीक्षा करते हैं तो पाते हैं… Read More
यह बात अक्सर मुझे तंग करती रही है कि भारत में और विशेष रूप से मुख्यधारा के हिन्दी सिनेमा में साहित्य पर बनने वाली फिल्मों की संख्या इतनी कम क्यों है। वैसे तो यह संख्या हमेशा ही बहुत कम रही… Read More