पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का अनायास ही 67 वर्ष की उम्र में 6 अगस्त 2019 को देहांत हो गया। उन्होने 10 दिसंबर 2016 में एम्स में किडनी ट्रांसप्लांट कराया था। जिसके बाद वह स्वास्थ्य को लेकर सजग थीं। दिल को झकझोर देने वाली यह खबर तब सुनी जब भारतवासी आर्टिकल 370 की खुशियाँ मना रहें थे। स्वयं सुषमा जी ने भी ट्वीट किया था।
कोई नहीं जनता था यह उनका आखिरी ट्वीट बन जाएगा।
श्री हरदेव शर्मा और श्रीमति लक्ष्मी देवी की बेटी का जन्म 14 फरवरी 1952 को अंबाला केंट में हुआ। पंजाब विश्वविद्यालय से लॉ की पढ़ाई पूरी कर 13 जुलाई 1975 में श्री स्वराज कौशल से शादी हुई, जिनसे एक लड़की भी है। कॉलेज के समय एनसीसी भी जॉइन की जिसमें अपने कॉलेज एस. डी. कॉलेज बेस्ट कैडेट चुना गया।
भारतीय राजनीति के लिए यह एक न भुलाए जाने वाला दिन है। भाजपा की एक सशक्त और मुखर आवाज को हमने खो दिया। सरल और सादगी की पहचान बनी सुषमा स्वराज ने अटल बिहारी वाजपेयी के बाद हिंदी भाषा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए अथक प्रयास किए। कई भाषाओं की जानकार होने के साथ हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत आदि भाषाओं में सुषमा जी का अधिकार था। शास्त्रीय संगीत, ड्रामा और फ़ाइन आर्ट्स में विशेष रुचि रखने वाली सुषमा जी कविता और साहित्य पढ़कर खूब आनंदित होती थीं।
सुषमा स्वराज के राजनीतिक करियर पर एक नज़र डाले तो पता चलता है कि कम उम्र में ही बड़े-बड़े पदों पर काम कर चुकी हैं; 1977 में हरियाणा में 25 साल की सबसे युवा कैबिनेट मंत्री बनी। सात बार सांसद बनीं और तीन बार विधायक रहीं। इंदिरा गांधी के बाद दूसरी महिला विदेश मंत्री थीं। 13 अक्तूबर 1998 से 3 दिसंबर 1998 तक दिल्ली की 5वीं मुख्यमंत्री रहीं। बीजेपी में पहली महिला महासचिव भी रह चुकी हैं। 26 मई 2014 से 30 मई 2019 तक विदेश मंत्री रहीं। सुषमा ने 1996 में अटल बिहारी बाजपेयी की 13 दिनों की सरकार में कैबिनेट मंत्री के तौर पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय संभाला था। इन सबके लिए सुषमा स्वराज पहली और एक मात्र महिला संसद हैं, जिन्हें आउटस्टैंडिंग पार्लियामेंट्रियन का अवार्ड मिला है।
बतौर विदेश मंत्री उनके कार्य को पूरी दुनियाँ ने सराहा है। विदेश मंत्रालय को आम लोगों के लिए सहज़ बनाया। आम जनता की जो भी परेशानी थी उसे शीघ्र ही सुना और ख़त्म किया। एक प्रसंग मेरा भी है; ट्रेन में यात्रा के दौरान एक यात्री से मुलाक़ात जो मलेशिया की जेल से छुट कर भारत वापस आया था, जिसके लिए उसने पूरा श्रेय तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और उनकी कार्य प्रणाली को ही दिया। ऐसी बहुत-सी घटनाएँ रहीं हैं, जिन्होंने सुषमा स्वराज के प्रति सम्मान और लोकप्रियता को बढ़ाया।
अब यादों में रहेंगी सुषमा स्वराज उनके काम हर किसी को प्रभावित करते रहेंगे।