कविता : नेपथ्य में

किसी स्थान को  पहचानने की तरकीब समय को निर्धारित करने का तरीका तकनीक के घोड़ों पर सवार सभ्यता और धरती पर मौजूद अक्षांश और देशांतर रेखाएँ नेपथ्य में हैं। हथेलियों पर बना मणिबंध  उस पर मौजूद  स्वस्तिक और द्वीप और… Read More

कविता : मजदूर @लॉक डाउन

बड़े बेदर्द हैं ये ऊंची ऊंची बिल्डिंगों वाले चौड़ी सड़कों वाले शहर जिसने खून पसीने से बनाया, सजाया उसे ही न दे सके दो वक्त की रोटियां एक अदद छत और उनके हिस्से का मान उनकी आंखो के आंसू सूख… Read More

कविता : कभी अलविदा ना कहना

अमन औ इकराम, एहतराम तेरे खूँ में है| जो नहीं है, वो सबब बाक़ी तेरे सुकूं में है| यूँ तो स्याह हर चेहरा है, पर, ख्याल है कि! तू अब, बहार- ए- शहरा है| न तेरी ख्वाईशों की, उड़ान कम… Read More

कविता : मजदूर होना आसान नहीं होता

कठिन होता है मजदूर होना मंडी में खड़े होना रोज़ पचास, सौ कम पर बिकना और दिन भर गुलाम बने रहना सोचा है कभी बिकना रोज़ रोज़ होता होगा कितना त्रासद ? पोटली में रोटी बिना छीली प्याज और चंद… Read More

कविता : राहगीर

राहगीर हूं, चला जा रहा हूं। अकेला नहीं, है, यह एहसास दूर गहरे कहीं। पर भीड़ का हिस्सा बन, खो जाऊं। ये उनको,ईमान को, इससे इंकार भी है। बेसबब आवारा बन फिरता नहीं, जो गुज़रता हूं, उन गलियों से, तस्वीर,… Read More

कविता : दिखने लगी है साफ साफ (डॉ. विजय कु. मिश्र)

हमारा सोचना कि हम जोर लगा दें तो पत्थर को भी पानी बना सकते हैं हमारा सोचना कि हम उछाल दें पत्थर तबियत से तो सुराख कर सकते हैं आसमान में हमारा सोचना भर था। ऐसी बहुत सी चीजें जो… Read More

कविता : प्रस्थान बिंदु (डॉ. विजय कु. मिश्र)

मछलियाँ नहीं जानती लेना प्रतिशोध वे नहीं पहचान पाती उस मछेरे को जिसने फँसाया उसे अपने जाल में वे तो जानती हैं बस तड़पना तड़प तड़प कर मरना नदी से विच्छिन्न हो दरअसल वे परिचित हैं भलीभाँति अपने इतिहास से… Read More

कविता : अक्षय तूणीर (डॉ. विजय कु. मिश्र)

कर दिया था प्रवाहित जल में अग्निदेव के निर्देश पर अर्जुन ने पांडवों के महाप्रस्थान के समय अपना गांडीव और उसी के साथ अपना अक्षय तूणीर भी जो पाया था उन्होंने अपनी साधना से स्वयं शिव से सृष्टि के कल्याण… Read More

कविता : वो चला गया, अपने गाँव

“श्रमिक एक्सप्रेस” खुल गई है शहर, तुम ख़ुश रहो वो चला गया, अपने गाँव वही, जिसे तुम मज़दूर कह कर दया से भर रहे थे। वही, जो न जाने कितने सालों से अपने पसीने को मेहनत की भट्टी में पकाकर… Read More

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कविता : बेटा बनवारी खूब मन लगा के

बेटा बनवारी ! खूब मन लगा के पढ़ो तनिक बेटा बनवारी खूब मन लगा के…. जितना चली तोहार हाथ, तबे बनी कोई बात, काम मिली सरकारी ख़ूब मन लगा के… गॉव नागरिआ के एके पढ़वइया बचपन मे दूर भईले बाप… Read More