बाज़ुओं के दम पर भूख की हर चुनौती को दरकिनार किये रहता था क़ुसूर बस इतना कि गाँव छोड़ दूर शहर में रहता था बे मौसमी प्रचंड कोरोनाई धूप में ज़रा सी छांव की चाह में मर गया चलते चलते… Read More

बाज़ुओं के दम पर भूख की हर चुनौती को दरकिनार किये रहता था क़ुसूर बस इतना कि गाँव छोड़ दूर शहर में रहता था बे मौसमी प्रचंड कोरोनाई धूप में ज़रा सी छांव की चाह में मर गया चलते चलते… Read More
“श्रमिक एक्सप्रेस” खुल गई है शहर, तुम ख़ुश रहो वो चला गया, अपने गाँव वही, जिसे तुम मज़दूर कह कर दया से भर रहे थे। वही, जो न जाने कितने सालों से अपने पसीने को मेहनत की भट्टी में पकाकर… Read More