मछलियाँ
नहीं जानती
लेना प्रतिशोध
वे नहीं पहचान पाती
उस मछेरे को
जिसने फँसाया उसे
अपने जाल में
वे तो जानती हैं बस
तड़पना
तड़प तड़प कर मरना
नदी से विच्छिन्न हो
दरअसल
वे परिचित हैं भलीभाँति
अपने इतिहास से
जिसमें जल के बिना
तड़प तड़प कर मरने की
लंबी परंपरा है।
मछेरे को भी
नहीं है कोई भय
हत्यारा घोषित होने का
वह तो बैठा है
मुग्ध होकर
अपने फेंके हुए जाल की
सफलता पर
मुस्कुरा रहा है
आँखें बंद किए मंद मंद
चमगादड़ों के साए में
वह तो देख रहा है
युद्ध के बाद
गिद्ध, चील और कौवों द्वारा
लोथड़ों को
नोंच नोंच कर खाने से भी
ज्यादा वीभत्स
ज्यादा लोमहर्षक दृश्य
जिसमें तड़प, खौफ और
मौत का मंजर
एक साथ मौजूद है
यह भी तो बदले हुए समय में
एक प्रकार का युद्ध है
रणनीतिक युद्ध।
दरअसल वह
जानता है भलीभाँति
तड़प, खौफ और मौत का
यह दृश्य ही
उसकी अगली यात्रा का
प्रस्थान बिंदु है
एक ऐसी यात्रा
जिसके ऐसे अनेक पड़ाव हैं ;
जो दिख रहे हैं
ये तो बस
शुरुआती घाव हैं।
उसे अभी छोड़ने हैं
और भी कई अस्त्र
इस सतर्कता के साथ
कि साँप भी मर जाए
और लाठी भी न टूट पाए
लाठियों से
या ऐसे अन्य सभी अस्त्रों से
युद्ध का समय
अब चला गया है
कुछ इसी तरह से
बार बार
उसके द्वारा छला गया है
वह मानता है
डालना चारा बार बार
मछलियों को
उन्हें फंसाने की
प्रक्रिया का ही हिस्सा है
ऐसा एक नहीं
लगभग हर किस्सा है।
अब
बदल चुका है परिदृश्य
पूरा का पूरा
बनानी होगी सबको
नई नई रणनीति
खोजना होगा
सभी को अपना अपना
प्रस्थान बिंदु
करनी होगी ऐसी यात्रा
जिसमें नजर गड़ाए रखना
जरूरी होगा
अपने शत्रु के बल पर
मित्रों के छल पर ;
कभी कभार नहीं
पल पल
हर पल।