हमारा सोचना
कि हम
जोर लगा दें तो
पत्थर को भी
पानी बना सकते हैं
हमारा सोचना
कि हम
उछाल दें पत्थर तबियत से
तो सुराख कर सकते हैं
आसमान में
हमारा सोचना भर था।
ऐसी बहुत सी चीजें जो
हम सोचते रहे निरंतर
एक प्रकार से घोषणा होती थी
हमारी शक्ति, हमारे सामर्थ्य की
और उसके प्रति
हमारे झूठे दर्प की
झलकता था
हमारा अहसास
अपनी ताकत के प्रति
उपस्थित को अनुपस्थित करने की
ताकत के प्रति
अनुपस्थित को उपस्थित करने की
ताकत के प्रति
आज वह टूटता जा रहा है
बड़ी तेजी से
बल्कि टूट चुका है
किसी अनाहूत
अवांछित परिस्थिति के
आगमन से
जिसने हमें कर दिया है कैद
खुद अपने अपने
घरों के भीतर
बता दी है हमें
हमारी अपनी सीमा
सीमित कर दिया है
हमारी सोच को
और जगा गया है
यह अहसास कि
हम सोचते रहे
सदियों से
अनवरत
कुछ एक प्रसंगों और
अपनी ताकत की
प्रासंगिकताओं को दिखाकर
कि हम चाह भर लें तो
क्या नहीं कर सकते
ये सारी की सारी सोच
और इसके सोचने का क्रम
अंततः एक भ्रम था।
सत्य अपनी जगह पर
खड़ा है मजबूती से
उसी तरह
जिस तरह खड़ा है आसमान
हमारे माथे के ऊपर
और हम
कितना ही ऊँचा
क्यों न कर लें अपने माथे को
कम नहीं कर सकते
आसमान की ऊँचाई
उसकी गाथा को।
हम कुछ और सोचते रहे 
सच कुछ और था
सच यह भी था
यूँ कहें कि यह ही था
कि
पत्थर, पानी, आकाश
सब हँसते रहे
हमारी सोच पर
और हम
हम फँसते रहे निरंतर
उस झूठ के जाल में
जो हमारी सोच का
आधार था।
हम खेलते रहे खेल नित्य
यह सोचते हुए कि
इस खेल में
मिल रही जीत
प्रकृति पर हमारी विजय का
शंखनाद है
और इसी जीत के मद में
हम करते रहे
बार बार, लगातार
अपनी मनमानी
हमने कभी न मानी
प्रकृति की व्यवस्था को
समय – समय पर
मिलने वाले उसके संकेतों को
दरअसल
वह जिसे हम
खेल समझकर खेलते रहे
अपने ही साथ
एक खिलवाड़ था।
खैर,
आज टूट गयी है
पूरी तरह
अपने द्वारा बनाई गई
हमारी अपनी ही प्रतिमा
और जब उसके अवशेषों को
उठाकर देखा
चुटकियों में
चाहे अनचाहे
अपने अपने घरों में कैद हो
तो यह अहसास
और अधिक प्रबल हुआ कि
सब कुछ मिल जाना है
मिट्टी में एक दिन
और फिर धीरे धीरे हम
होने लगे हैं तैयार
उस सोच की शिला से
उतरने को
जिस पर खड़े होकर
हम देख ही नहीं सकते
नीचे की अपनी जमीन
जो अब
उस सोच से उतरते उतरते
दिखने लगी है
साफ साफ
न केवल जमीन
बल्कि
पत्थर, पानी, आकाश भी
और दिखने लगा है साफ साफ
उसका स्वभाव भी
साथ ही
उसको बदल देने की
अपनी अपरिमित ताकत का
कोरा अहसास
पहचानने लगे हैं हम
प्रकृति को
उसके मिजाज को
अपनी पुरानी रीति
और रिवाज को
हम देखने लगे हैं
साफ साफ
प्रकृति की ताकत
और उससे पार पाने की
अपनी सीमाओं को भी।

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