कर दिया था
प्रवाहित जल में
अग्निदेव के निर्देश पर
अर्जुन ने
पांडवों के महाप्रस्थान के समय
अपना गांडीव
और उसी के साथ
अपना अक्षय तूणीर भी
जो पाया था उन्होंने
अपनी साधना से
स्वयं शिव से
सृष्टि के कल्याण के लिए।
रोक लिया गया होता
प्रवाहित होने से
गांडीव और अक्षय तूणीर को
रख लिया गया होता
संभालकर, सुरक्षित
भविष्य के लिए
या फिर
होते मौजूद स्वयं अर्जुन
हमारे इस युग में भी
ले आते स्वर्ग से
दिव्यास्त्र
गांडीव
और वह अक्षय तूणीर भी
जिसके तीर
कभी समाप्त ही नहीं होते।
जिस जिस को था दंभ
अपनी शक्ति और सामर्थ्य का
खड़े हैं शीश झुकाए
हतप्रभ हैं सभी
अचानक हुए हमले से
जिनको भरोसा था
अपने अपने तूणीर
और उसमें रखे हुए
तीरों पर
सूझ नहीं रहा उन्हें
कोई तरकीब
समझ नहीं पा रहे हैं
शत्रु के वार को
उसके घात आघात को
उससे लगने वाले घाव को
उसके संक्रमण को।
आज वे सभी लगे हैं खोज में
या फिर कर रहे हैं प्रतीक्षा
किसी अर्जुन की
उसके गांडीव और
अक्षय तूणीर की
जो किए जा चुके हैं प्रवाहित
स्वयंअर्जुन के द्वारा
द्वापर में ही
जल में
अग्निदेव के निर्देश पर।
जिन्हें जितना अधिक था
भरोसा
अपने अपने तूणीर पर
उसमें मौजूद तीर पर
वे आज
उतने ही अधिक
घायल और निःसहाय हैं
उनकी शक्ति
अर्जुन की तरह
साधना से अर्जित शक्ति नहीं
उनके तीर
मानव कल्याण के लिए
पैने नहीं किए गए
उनमें साधना की जगह
शासन का भाव अधिक प्रबल है
षड्यंत्र है, प्रपंच है, छल है।
अर्जुन जानते थे
अपनी शक्ति के साथ
उसकी मर्यादा भी
वे मानते थे
कि उनकी शक्ति
मनुष्यता के लिए
एक अनुपम उपहार है
वे रखते थे क्षमता
स्वर्ग से
दिव्यास्त्र अर्जित करने की
वे जानते थे
अपनी शक्ति और
उसकी सीमा भी
साथ ही सचेत थे
उनके प्रयोगों के प्रति
थे समुचित मर्यादित
और
उनकी यह मर्यादा ही
वास्तव में
उनका गांडीव था
और था उनका
अक्षय तूणीर भी।

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