कठिन होता है मजदूर होना
मंडी में खड़े होना
रोज़ पचास, सौ कम पर बिकना
और दिन भर गुलाम बने रहना
सोचा है कभी
बिकना रोज़ रोज़
होता होगा कितना त्रासद ?
पोटली में रोटी
बिना छीली प्याज
और चंद आलू के टुकड़े
यही चलाती है वह मशीन
जो सोचती नहीं
सीमेंट की बोरियों की सियन जैसी
भर्र्र से खुल जाने वाली
बहुत कठिन होता है साथी
मजदूर भले बिकता है रोज़
पर हाथ नहीं फैलता कभी
बिक नहीं पाता कभी
तो लौट जाता है उल्टे पांव
बहुत स्वाभिमानी होता है मजदूर
हमारे आप से अधिक
जो भरे हुए है
सोचा है कभी उसके मर जाने को
जीते जी
जब वह फैलाता होगा हाथ भीड़ में
गाड़ियों से भरकर आयी हुई रोटी के लिए ?
अरे! क्या देगा उन्हें रोटी कोई भी
जो उगाता है उसे
बहुत कठिन होता है मजदूर होना साथी
फुटपाथ और रैन बसेरे काटते होंगे उसे
बिना काम के उसे खाली सोना
नहीं लगता होगा अच्छा
भागना चाहता होगा वह गांव
इसीलिए
क्योंकि वहां की मिट्टी
करती है उसका सम्मान
करती है उसको सलाम
देती है उसको सम्मान की रोटी
वह भी होता है मालिक
मजदूर होना आसान नहीं होता साथी

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