बड़े बेदर्द हैं ये
ऊंची ऊंची बिल्डिंगों वाले
चौड़ी सड़कों वाले शहर
जिसने खून पसीने से
बनाया, सजाया
उसे ही न दे सके
दो वक्त की रोटियां
एक अदद छत
और उनके हिस्से का मान
उनकी आंखो के आंसू
सूख चुके है
बिल्डिंगों की कतारों को
एकटक देखती वीरान आंखें
उन्हें देती होंगी बददुआ
जिनके कुत्ते भी
दूध और बिस्कुट खाते हुए
भौंकते होगे उनपर
जो लगे होंगे सुबह से
लंबी लाइनों में, दो रोटी के लिए
रोज़ रोज़ की जहालत
और खाली जेबें
मौत से भी बदतर देती होंगी एहसास
ऐसे ही नहीं चल पड़े होंगे वे
हज़ारों कीलोमीटर दूर
अपने घरों के लिए पैदल
पांवों में चप्पलों  की जगह बंधी
उन प्लास्टिक की बोतलों से पूछिए
उनके सफर की थकान
पैरों में फूट चुके छालों
और पत्थर सी हो चुकी चमड़ी से
समझिए सौंदर्य शास्त्र
कितना त्रासद होता होगा
शहर से भगाए जाने का दर्द
गांव आज भी वही है
सच्चे और सरल
अगर चल सकते वे तो दौड़ कर
लगा लेते अपने अपनों को गले
और रो लेते मन भर

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