जब से श्रृष्टि का निर्माण हुआ तब से सूर्य हर सुबह उदय होता है, शाम को अस्त हो जाता है और फिर अगली सुबह के साथ आसमान में चमक उठता है। सूर्य के निरंतर उदय और अस्त के साथ एक एक दिन कर के हजारों वर्ष बीत गए। इन हजारों वर्षों में अनगिनत दिन हैं किन्तु नियति ने बहुत कम दिन ऐसे सुनिश्चित किये जिन पर पृथ्वी का अस्तित्व रहने तक स्वयं इतिहास गौरवान्वित महसूस कर सके। 9 मई 1540 का दिन भी ऐसा ही है जिसके दर्ज होने पर स्वयं इतिहास ने खुद पर गर्व महसूस किया होगा और हमेशा करता रहेगा । यही वो दिन था जब राजपूताना सहित समूचे भारत की लाज बचाए रखने वाले वीर महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था। प्रताप के पिता थे उदयपुर के संस्थापक उदय सिंह द्वितीय और माता थीं महारानी जयवंता बाई। प्रताप एक ऐसे योद्धा थे जो मुगल सल्तनत के आगे कभी नतमस्तक नहीं हुए। आज उनकी 480वीं जयंती पर आपको बताते हैं महाराणा प्रताप से जुड़ी कुछ रोचक बातें :-
* आज हम जिम जाते हैं और शुरुआत के दिनों में अगर 40-45 किलो का बैंचप्रेस लगा लेते हैं तो खुद के बाहुबल पर फूले नहीं समाते लेकिन क्या आप जानते हैं की महाराणा प्रताप 81 किलो का भला और छाती पर 72 किलो का कवच ले कर चलते थे! उनका भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन मिलाकर 208 किलो था। और ये सभी शस्त्र आज भी मेवाड़ राजघराने के म्यूजियम में सुरक्षित है।
* इतिहास के पन्नों पर अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज कराने वाले महाराणा प्रताप की वीरता खानपान से ज़्यादा उनके अंदर के आत्मबल के कारण थी । तभी तो वे घास की रोटियां खा कर भी अपने आपको युद्ध के लिए हमेशा तैयार रखते थे ।
* जी हां उन्होंने मायरा की गुफा में घास की रोटियां खाकर दिन गुजारे थे। और इन बातों का साक्ष्य कई किताबों के अलावा राजस्थान की लोक कथाओं में भी मिल जायेगा। गुफा आज भी मौजूद है। हल्दी घाटी युद्ध के समय इसी गुफा में प्रताप ने अपने हथियार छुपाए थे। यहां एक मंदिर भी मौजूद है। इतिहासकारों के अनुसार हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप ने बहलोल खां पर ऐसा वार किया कि सिर से घोड़े तक के दो टुकडे कर दिए थे।
* महाराणा प्रताप ने अपनी शिक्षा अपनी मां जयवंता बाई से प्राप्त की। ये उनकी माता की ही सीख थी जिसके कारण प्रताप हमेशा अपने साथ दो तलवारें रखते थे। ऐसा वो इस लिए करते थे कि यदि उनके सामने कोई निहत्था दुश्मन आजाए तो उसे एक तलवार दे कर बराबरी का मौका दिया जाए।
* महाराणा प्रताप युद्ध के मैदान में पलक झपकते दुश्मन पर टूट पड़ते थे। असल में उनकी इस फुर्ती का कारण था उनका घोडा चेतक। कहते हैं जब चेतक दौड़ता था तो तेज हवाएं भी उसका पीछा नहीं कर पाती थीं।
श्यामनारायण पाण्डेय ने यूं ही नहीं लिखा कि
रण बीच चौकड़ी भर-भर कर
चेतक बन गया निराला था
राणाप्रताप के घोड़े से
पड़ गया हवा का पाला था
जो तनिक हवा से बाग हिली
लेकर सवार उड़ जाता था
राणा की पुतली फिरी नहीं
तब तक चेतक मुड़ जाता था
कहते हैं जब चेतक दौड़ता था तो उसके पैर जमीन पर पड़ते दिखाई नहीं देते थे। हल्दीघाटी युद्ध में उसने मानसिंह के हाथी के सिर तक उछलकर पैर रख दिया था। जब प्रताप घायल हुए तो वह 26 फ़ीट लंबे नाले को लांघ गया।
* महाराणा प्रताप ने अपनी सेना भी अपने जैसे रणबांकुड़े जूटा रखे थे। हल्दीघाटी युद्ध में प्रताप की सेना की कमान अफगानी पठान हकीम खान के हाथों में थी। अकबर के खिलाफ वे प्रताप की सेना के सेनापति के रूप में लड़े थे। हकीम खान ने अपनी वीरता का परिचय तब दिया जब महाराणा-अकबर की सेना के बीच युद्ध में मेवाड़ उनका सिर धड़ से अलग हो गया किन्तु इसके बावजूद वो कुछ देर लड़ते तक रहे। राजस्थानी के लोकगीतों में उनकी इस बहादुरी का जिक्र मिलता। जहां उनकी मौत हुई थी, वहां उनकी समाधि आज भी मौजूद है।
* महाराणा प्रताप की बहादुरी ने अकबर के रातों की नींद उड़ा दी थी। हल्दीघाटी का युद्ध इतना विनाशकारी रहा की अकबर उस युद्ध के ख्वाब देख कर रातों को नींद से जाग जाया करता था। वीर रस की कविताओं में यह उसके डर के रूप में प्रचलित हो गया। यही वो विनाशकारी युद्ध था जिसके बाद मुगलों को उनके अजेय होने का भ्रम टूटा गया। इतिहासकार जेम्स टॉड ने इसकी तुलना थर्मोपॉली के युद्ध से की थी।
* 30 वर्षों तक लगातार प्रयास के बावजूद भी अकबर महाराणा प्रताप को बंदी न बना सका। भले ही वे दोनों दुश्मन थे किन्तु इसके बाद भी अकबर प्रताप की बहादुरी का कायल था। कई लोकगीतों में इस बात का जिक्र है कि महाराणा की मौत की खबर सुनकर अकबर की आँखें भी नम हो गई थी।
* महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच हल्दीघाटी का महायुद्ध 1576 ई में लड़ा गया। इस युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना में सिर्फ 20000 सैनिक तथा अकबर की सेना के 85000 सैनिक थे। अकबर की विशाल सेना और संसाधनों की ताकत के बावजूद महाराणा प्रताप ने हार नहीं मानी और मातृभूमि के सम्मान के लिए संघर्ष करते रहे। हल्दीघाटी का युद्ध इतना भयंकर था कि युद्ध के 300 वर्षों बाद भी वहां पर तलवारें पायी गयी। आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 को हल्दीघाटी में मिला था।
* महाराणा को भारत का प्रथम स्वतंत्रता सेनानी भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने कभी अकबर के सामने समर्पण नहीं किया। उस समय में वह एकमात्र ऐसे राजपूत योद्धा थे, जिन्होंने अकबर को चुनौती देने का साहस किया। हालांकि, एक बार उन्होंने समर्पण के विषय में सोचा जरूर था, लेकिन तब मशहूर राजपूत कवि पृथ्वीराज ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया।
* कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने अपने वंशजों को यह वचन दिया था कि जब तक वह चित्तौड़ को पुनः अपने अधीन नहीं कर लेते, तब तक वह पुआल पर सोएंगे और पेड़ के पत्ते पर खाएंगे। आखिर तक महाराणा प्रताप को चित्तौड़ वापस नहीं मिला। उनके वचन का मान रखते हुए आज भी कई राजपूत अपने खाने की प्लेट के नीचे एक पत्ता रखते हैं और बिस्तर के नीचे सूखी घास का तिनका रखते हैं।
ऐसे महावीर योद्धा को कोटि कोटि नमन। इन जैसे वीरों की वजह से आज हम अपने इतिहास गर्व करते हैं।

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