geet mere malik mujhse payar karo

गीत : मुझे चरणों में जगह दे दो

मुझे चरणों में जगह दे दो न इंकार करो। मेरे मालिक हो मुझे प्यार करो प्यार करो।। ****** डोर जब तुम से बंधी है तो कहाँ जाऊं मैं। जख्मे दिल और कहीं जाके क्यों दिखाऊँ मैं।। मरहमे जख्म हो तुम… Read More

sawan ka geet kajari

एक बड़े समाज का प्रतिनिधित्व करती है “कजरी”

कजरी हमें भोजपुरी भाषा परम्परा से विरासत में मिली एक मधुर गीत है। यह गीत विशेष रूप से सावन महीने में गाया जाता है । सावन भी फाल्गुन की तरह उल्लास और उछाह का महीना होता है । जिस प्रकार… Read More

Communalism in Indian cinema and literature

भारतीय सिनेमा एवं साहित्य में साम्प्रदायिकता

हम जब किसी धार्मिक समुदाय की बात करते हैं, तो इस बात को भूल जाते हैं कि वह समुदाय एक आयामी नहीं होता। उसमें वे सभी भेद- विभेद होते हैं जो दूसरे धार्मिक समुदायों में होते हैं। एक अभिजात मुसलमान… Read More

ghazal me bhi zuban rakhta hu

ग़ज़ल : मैं भी जुबाँ रखता हूँ

मैं खामोश हूँ लेकिन, मैं भी जुबाँ रखता हूँ ! लोगों के छोड़े तीर, दिल में जमा रखता हूँ ! न समझो कि न आता मुझे जीने का सलीका, मैं पैरों तले जमीन, मुट्ठी में आसमाँ रखता हूँ ! मैं… Read More

ghazal nazar utha kar to dekh

ग़ज़ल : नज़र उठा कर तो देख

कितना मतलबी है जमाना, नज़र उठा कर तो देख कोंन कितना है तेरे क़रीब, नज़र उठा कर तो देख न कर यक़ीं सब पर, ये दुनिया बड़ी ख़राब है दोस्त, आग घर में लगाता है कोंन, नज़र उठा कर तो देख भला आदमी के गिरने में, कहाँ लगता है वक़्त अब, कोई कितना गिर चुका है, नज़र उठा कर तो देख क्यों ईमान बेच देते हैं लोग, बस कौड़ियों में अपना, कितना बचा है ज़मीर अब, नज़र उठा कर तो देख शौहरत की आड़ में, खेलते हैं कितना घिनोंना खेल, हैं कहाँ बची अब शराफ़तें, नज़र उठा कर तो देख जो हांकते हैं डींगें, औरों का भला करने की दोस्त, कितने सच्चे हैं वो दिल के, नज़र उठा कर तो देख तू समझता है सब को ही अपना, निरा मूर्ख है “मिश्र”, कितने कपटी हैं अब लोग, नज़र उठा कर तो देख +20

मुंशी प्रेमचंद और उनका साहित्य

उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद सिर्फ एक व्यक्ति, साहित्यकार, शिक्षक ही नहीं अपितु एक चरित्र एक दर्शन एक प्रेरणा का नाम है जो हम सब के द्वारा स्वीकार्य है साथ ही साथ आत्मसाध्य भी। मुंशी प्रेमचंद के साहित्य की समीक्षा मेरे… Read More

poem sore woman mind

कविता : व्यथा स्त्री मन की

मैं स्त्री हूँ …. हाँ, मैं वही स्त्री हूँ, जिसे इस पुरूष प्रधान समाज ने, हमेशा हीं प्रताड़ित किया है। हाँ, वही समाज जिसने, मेरे प्रति अत्याचार किया, व्यभिचार किया और, मेरी इस दयनीय स्थिति का पूर्णत: ज़िम्मेदार भी है।… Read More

Mushi Premchand and cinema

प्रेमचंद और सिनेमा

पिछले एक सप्ताह से एक ऐसे विषय पर लिखने की जद्दोजहद में लगा रहा कि दिन-रात कैसे बितते रहे, पता ही नहीं चल रहा था। इसी उधेड़बुन में लिखते हुए न जाने कितने पन्नों को रफ़ करते हुए फाड़ डाला,… Read More

writer munshi premchand

लेख : मुंशी प्रेमचंद को पढ़ते हुए

क्यों न फिरदौस को दोज़ख़ से मिला दें या रब, सैर के वास्ते थोड़ी-सी फ़िज़ा और सही।। ग़ालिब मुंशी प्रेमचंद या ऐसे अनेक रचनाकारों को आज आधुनिकतावाद के इस महामारी की चपेट में बैठे-बिठाए कोरोना पॉज़िटिव घोषित किया जा रहा… Read More

parayi si lagti hai

ग़ज़ल : पराई सी लगती है   

हमें तो हर वफ़ा में, बेवफ़ाई सी लगती है अब तो अच्छी बात भी, बुराई सी लगती है जब मिलती हैं सजाएँ, बिन ख़ता के यारो, तो दिल को हर चीज़, पराई सी लगती है    कुछ कहें तो लोग, समझते… Read More