ghazal me bhi zuban rakhta hu

मैं खामोश हूँ लेकिन, मैं भी जुबाँ रखता हूँ !
लोगों के छोड़े तीर, दिल में जमा रखता हूँ !

न समझो कि न आता मुझे जीने का सलीका,
मैं पैरों तले जमीन, मुट्ठी में आसमाँ रखता हूँ !

मैं उडता हूँ आसमानों में बस बेख़ौफ़ हो कर,
मगर जमीं नीचे है, मैं इसका गुमां रखता हूँ !

कोई बाहर के अंधेरों से क्या डरायेगा मुझको,
मैं तो वास्ते रौशनी के, दिल में शमा रखता हूँ !

ज़िन्दगी के खेल में कल हों न हों ये क्या पता,
पर जीतने की ख्वाहिशें, मैं खामखाँ रखता हूँ !

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