उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद सिर्फ एक व्यक्ति, साहित्यकार, शिक्षक ही नहीं अपितु एक चरित्र एक दर्शन एक प्रेरणा का नाम है जो हम सब के द्वारा स्वीकार्य है साथ ही साथ आत्मसाध्य भी। मुंशी प्रेमचंद के साहित्य की समीक्षा मेरे बस की बात नहीं है फिर भी एक छोटी सी कोशिश करने की कोशिश आप सब के बीच रखता हूँ-
मुंशी प्रेमचंद ने बहुत अधिक कहानियां, लेख उपन्यास आदि लिखे हैं सब तो अभी तक नहीं पढ़ पाया हूँ लेकिन एक कहानी संग्रह में “पूस की रात”, “ईदगाह”, “बूढ़ी काकी” से लेकर “पशु से मनुष्य” “दूध का दाम” आदि कई कहानियां पढ़ी हैं, ग्रामीण समाज के हर पहलू को समेटे हुए प्रेमचंद की रचनाएं समाज के वास्तविक स्वरूप को प्रदर्शित करती नजर आती हैं, उनकी रचनाओं को पढ़ कर बहुत ही आसानी से उनकी दूरदर्शिता का आकलन किया जा सकता है, उन्होंने उस दौर में जो लिखा जो कहा आज के दौर में भी वो बातें उतनी प्रासंगिक हैं।
उनकी रचनाओं को पढ़कर सामाजिक एवं राजनीतिक सिद्धान्तों की प्रसंगकिता बहुत ही सरल तरीके से समझा जा सकता है, जो कि किसी अन्य ग्रंथ या माध्यम से बहुत मुश्किल प्रतीत होता है।
पूस की रात हो या पशु से मनुष्य हो किसी भी कहानी को पढ़कर बहुत सरलता से स्पष्ट किया जा सकता है कि मुंशी प्रेमचंद, जाति धर्म ऊंच नींच में बंटे सामाजिक ताने बाने तथा सामाजिक कुरीतियों, जुल्म शोषण , सामंतवादी , साम्राज्यवादी चिंतन एवं चरित्र के विरुद्ध, शिक्षा के लोकतांत्रिक विकास समाजवादी चिंतन और एक उन्नत चरित्र को अग्रसर करने एवं क्रांतिकारी दृष्टिकोण को यथार्थ स्वरूप देने का काम किया है। एक जगह वो लिखते हैं कि-
गरीबों की लाश पर सब के सब गिद्धों की तरह जमा होकर उनकी बोटियां नोच रहे हैं; इस हाहाकार को बुझाने के लिए दो-चार घड़े पानी डालने से तो आग और भी बढ़ेगी। “इन्कलाब” की जरूरत है पूरे “इन्कलाब” की।।
और उपन्यास संग्रह में “गोदान” और “कर्मभूमि” दोनों ही थोड़ा थोड़ा ही पढ़ा हूँ। कर्मभूमि जितना पढ़ा हूँ के लिए बस इतना ही कहना चाहूंगा कि यह उपन्यास मेरे जीवन के लिए एक आदर्श शिक्षक का काम कर रही है, जिसे पढ़कर कोई भी व्यक्ति जीवन पर्यंत मार्गदर्शन की जीवंतता को सजीव रूप से महसूस कर सकता है।।प्रेमचंद की रचनाएँ हर काल परिस्थिति में अनंत पीढ़ी तक समाज के लिए निश्चित तौर पर आईना का काम करेंगी। मुंशी प्रेमचंद के विचारों से सीख लेकर हम सब निश्चित ही एक सभ्य समाज की बुनियाद बन पाएंगे।
एक बात यह भी कहना चाहता हूँ कि प्रेमचंद से ही प्रेरित होकर मैंने लिखना शुरू किया है
उनके विचारों से प्रेरित होकर चन्द पंक्तियां-
लिखते तो वो लोग हैं,
जिनमें दर्द है, अनुराग है।
लिखते तो वो लोग हैं,
जिनमें मोहब्बत है, एहसास है।
वो क्या लिखेंगे खाक,
जिनमें न दर्द है, न मिठास है।
न मोहब्बत है, न एहसास है,
जिनमें सिर्फ भोग है, विलास है।