किसी स्थान को पहचानने की तरकीब समय को निर्धारित करने का तरीका तकनीक के घोड़ों पर सवार सभ्यता और धरती पर मौजूद अक्षांश और देशांतर रेखाएँ नेपथ्य में हैं। हथेलियों पर बना मणिबंध उस पर मौजूद स्वस्तिक और द्वीप और… Read More

किसी स्थान को पहचानने की तरकीब समय को निर्धारित करने का तरीका तकनीक के घोड़ों पर सवार सभ्यता और धरती पर मौजूद अक्षांश और देशांतर रेखाएँ नेपथ्य में हैं। हथेलियों पर बना मणिबंध उस पर मौजूद स्वस्तिक और द्वीप और… Read More
महाराणा प्रताप बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जब मैं स्कूल में था ।प्रताप को विशेष रूप से जानने-बुझने की जिज्ञासा जागृत हुई । मैं स्तब्ध था,क्योंकि अभी तक राष्ट्रनायकों से ज्यादा आक्रमणकारियों के विषय में पढ़ने को मिला था ।… Read More
खड़ी आँगन में अगर, दीवार न होती ! यूं दिलों के बीच यारा, तक़रार न होती ! महकती इधर भी रिश्तों की खुशबुएँ, गर जुबां की तासीर में, कटार न होती ! न आतीं यूं ज़िंदगी के सफर में आफ़तें, अगर रहबरों के दिल में, दरार न होती ! यहाँ खिलते गुल भी महकता जहाँ भी, गर नीयत बागवां की, शर्मसार न होती ! न अखरता इतना खिज़ाओं का मौसम, अगर दिल में ख़ारों की, भरमार न होती ! न होता पैदा खामोशियों का सिलसिला, अगर नफ़रतों से दुनिया, बेज़ार न होती ! यारो बन जाता आदमी भी देवता अगर, ये दुनिया ख्वाहिशों का, शिकार न होती ! न होती ज़रूरत इधर मुखौटों की “मिश्र”, अगर आदमी की आत्मा, बीमार न होती +80
जब से श्रृष्टि का निर्माण हुआ तब से सूर्य हर सुबह उदय होता है, शाम को अस्त हो जाता है और फिर अगली सुबह के साथ आसमान में चमक उठता है। सूर्य के निरंतर उदय और अस्त के साथ एक… Read More
बड़े बेदर्द हैं ये ऊंची ऊंची बिल्डिंगों वाले चौड़ी सड़कों वाले शहर जिसने खून पसीने से बनाया, सजाया उसे ही न दे सके दो वक्त की रोटियां एक अदद छत और उनके हिस्से का मान उनकी आंखो के आंसू सूख… Read More
अमन औ इकराम, एहतराम तेरे खूँ में है| जो नहीं है, वो सबब बाक़ी तेरे सुकूं में है| यूँ तो स्याह हर चेहरा है, पर, ख्याल है कि! तू अब, बहार- ए- शहरा है| न तेरी ख्वाईशों की, उड़ान कम… Read More
कठिन होता है मजदूर होना मंडी में खड़े होना रोज़ पचास, सौ कम पर बिकना और दिन भर गुलाम बने रहना सोचा है कभी बिकना रोज़ रोज़ होता होगा कितना त्रासद ? पोटली में रोटी बिना छीली प्याज और चंद… Read More
क्षमा मिश्रा नाम था उसका। लेकिन मोहल्ले के सारे लड़के उसे छमिया कह कर पुकारते थे। महज़ अठारह बरस की उम्र में मोहल्ले में हुई अठाईस झगड़ों का कारण बन चुकी थी वो। उसका कोई भी आशिक़ चार महीने से… Read More
राहगीर हूं, चला जा रहा हूं। अकेला नहीं, है, यह एहसास दूर गहरे कहीं। पर भीड़ का हिस्सा बन, खो जाऊं। ये उनको,ईमान को, इससे इंकार भी है। बेसबब आवारा बन फिरता नहीं, जो गुज़रता हूं, उन गलियों से, तस्वीर,… Read More