Bhagoriya Festival

कविता : लोक पर्व भगोरिया

जंगल में जब टेशू और महुआ खिलते हैं तब सुनाई देती है फाल्गुन की आहट मालवा निमाड़ धरा पर और भगोरिया पर्व की उमंग मिलने को आतुर पिया संग निकले घर से सजकर अपनी पीड़ाओं को तजकर रंग बिरंगी पोशाक… Read More

poem ragistan ka jhahaj

कविता : रेगिस्तान का जहाज

सुबह राबड़ी का कलेवा करके निकले हैं घर से जोरू और मोहरू ऊंट को पैदल लेकर जंगल में । छोंकड़ा के पेड़ों में उल्टे लटक रहे हैं सींगर हरी हरी लूम के साथ ज्यादा ऊंचाई होने से ऊंट के मुंह… Read More

nayasawera2023

कविता : लक्ष्य नए अपनाए

आओ, खुशियां बाहों में भर लें, आज लक्ष्य नए अपनाए । नए वर्ष की नवकिरणों से, अंधियारों को मिटाए । ‘ अजस्र ‘ आरंभ ये नव वर्ष का, सुखद स्मृतियां आधार बने। दुःख की काली रातें भूलकर, खुशियों के दिन… Read More

pram2023

कविता : प्रेम मेरा कुछ कम तो नहीं है

नहीं आता है मुझको आह का गान, वियोगी कवि सी नहीं मेरे आलाप की तान, मैं क्यों कर न सका वैसा ही करुण विलाप, जैसे कौंच खग ने किया था वेदना का प्रलाप, मेरे शब्द नहीं बन पाए पीड़ा की… Read More

happy new year

कविता : नई साल की राम-राम

नई साल की राम-राम। नई साल की राम-राम।। सब करो नई उम्मीदों से काम, कोई न बनो काम हराम। सब करो शुरू उम्दा काम, कोई न बनो काम हराम। नए काम की राम-राम। नई साल की राम-राम।। सब गरीबी-अमीरी;ऊँच-नीच; जाति-पाति… Read More

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कविता : गुजर गया यह साल

थोड़ी खुशियां, थोड़े गम थे, यादें रह गई बाकी। जिनको जो मिलना था मिल गया, कुछ को आशा जरा सी। ‘अजस्र’ आशा से जीवन चलता, दिन-दिन, पल-पल गिन-गिन। आस टूटे तो श्वास टूट जाए, गुजरा साल वो अपना ही। दिन-दिन,… Read More

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कविता: किसान की आबाज

तुम औरें मारत रए भैंकर मार और मार रए अबै भी धीमें – धीमें सें धरम, जात, करजा और कुरीतयंन में बाँधकें अंदबिस्बास, जुमले और बेकार कानून बनाकें पढ़ाई – लिखाई सें बंचित करकें लूटत रए हमें पर अब हम… Read More

indian village poem

कविता : सच में कुछ नहीं बदला

आज बहुत दिनों बाद पहाड़ों की बीच बसे गांवों में जाने का मौका मिला, सच में आज भी गांव में कुछ नहीं बदला.! ठंडी ठंडी हवा चलती है वहां, प्रकृति के शानदार नजारे आकर्षित करते हैं वहां, शहरों में तो… Read More

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कविता : बेटी – बंदनवार

जीवन आशाओं की, आन है बेटी । गाथाऐं ‘ अजस्र ‘ , गुणगान है बेटी । विश्वजागृति जन-अभियान है बेटी । सप्त सावित्री धर्म, पहचान है बेटी । पिता का आदर्श, सम्मान है बेटी । खुद मां का रूप, उपमान… Read More

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कविता : भरोसा नहीं

इंसान का इंसान को ही भरोसा नहीं है। मौत का भी अब किसी को भरोसा नहीं। कब किसकी आ जाये कोई कह सकता नहीं। अब तो चलते फिरते भी छोड़कर चले जा रहे हैं।। हँसते हुए निकले थे सुबह अपने… Read More