सुबह राबड़ी का कलेवा करके
निकले हैं घर से
जोरू और मोहरू
ऊंट को पैदल लेकर
जंगल में ।
छोंकड़ा के पेड़ों में
उल्टे लटक रहे हैं सींगर
हरी हरी लूम के साथ
ज्यादा ऊंचाई होने से
ऊंट के मुंह तक
नहीं पहुंच पा रहे हैं
बांस में लगी धारदार दरांती से
काटी गई हैं
सींगर वाली टहनी
ऐसे ही करते हैं
भेड़ बकरी चराने वाले भी
कई बार तो
टकला तक बना देते हैं, पेड़ को
दोपहर होने से पहले
लौटना है घर
ऊंट यदि भूखा रहा तो
खैर नहीं है बच्चों की
लौटते समय
ऊंट की सवारी के लालच में
गर्मी में भी
रोज चले आते हैं जंगल
ऊपर बैठते समय
कसकर पकड़ लेते हैं
उसका कुम्मा बालों वाला
अपने को साधने के लिए।
ऊंट लड़ी से किए जाते हैं
अनेक तरह के
खेती किसानी के काम
रखा जाता है
उसकी सेहत का विशेष ध्यान
सुबह के वक्त
पानी के साथ
फिटकरी और मैथी
कई चीजें मिलाकर
चूर्ण तैयार रखना
मौसम के हिसाब से खाना
सर्दियों में ग्वार का फडेश
पीपल और नीम की पत्तियां
गर्मियों में चने की खारी और
कई तरह के आटे की सांधी
मिलाकर भूसे के साथ
दिया जाता है
पूरे घर का ढांचा
टिका रहता है
उसके कंधों पर
गरीबों के लिए
किसी मशीनरी से
कम नहीं है
वह नहीं रुकता
तेज आंधी में
तपती सड़क और रेतीले रास्ते में
कड़कती बिजली
मूसलाधार बारिश और
कड़ाके की ठंड में
नहीं करता नफरत
दूसरे प्राणियों से
मनुज की तरह
रेगिस्तान का जहाज।