kahani-ghar-say-farar-zindagi2023

उतरत दिसंबर की भोर अम्मा ने साक्षी को जगाते हुए बड़े लाड़ – प्यार से कहा –

” उठो बिन्नू! उठो! मुहल्ला के सारे मौड़ी – मौड़ा जग गए हैं। का तुमें उठने नईंयांँ ? जितेंद्र सर की टूशन की बेराँ होबे बाई हैगी, बीसई मिनट बचे हैं। फटाफट तज्जार हो जाओ। कायकि यी साले तुमाई दो – ढाई मईना बाद हाईस्कूल की परीक्षा है। सो तनक पढ़ाई – लिखाई में सीरियस हो जाओ। संजाँ – सवेरें मन लगाकें लिख – पढ़ लेऊ करे। ”

” हओ अम्मा! अबे हाल उठ रए रोज तो उठ जाऊत। आज तनक ठंड जादा लग रई ती और ऐतवार भी तो है। स्कूल की छुट्टी है। लेकिन जितेंद्र सर पिछले दो हफ्ता से छुट्टी के दिनाँ दो घण्टे पढ़ा रए हैं। वैसें एकई घण्टा की टूशन क्लास होत हमाई। ”

” अच्छा! उठो जल्दी और तज्जार हो। जब तक हम पोहा बनाएँ दे रए। थोड़ा खाकर चले जाना। संजाँ को पापा बजार से सेवफल भी लाए हतै। ये रखे हैं डलिया में। खाकर जाना काय तुमने रात कैं भी नईं खाए ते। भज्जा ने तो खा लए ते।”

साक्षी पंद्रह मिनट के भीतर तैयार हो गई। जब तक अम्मा ने पोहा बनाकर तैयार कर दिया था और प्लेट में उसके लिए परोस भी दिया था। पोहा के संगे सेवफल भी रख दिया था। झट से खाया – पिया और वो टूशन के लिए रेंजर साईकिल से रवाना हो गई। टूशन घर से आदा किलोमीटर दूर था। सो आज वो पन्द्रा – बीस मिनट लेट हो गई। आज सर जी को भी कुछ अर्जेंट काम आ गया था। वो अपने लौरे भज्जा को बाईक से झाँसी रेलबे टेसन छोड़बे गए थे क्योंकि उसका आज शाम चार बजे आगरा में एसएससी – सीजीएल का एग्जाम था। सर भी लौटते टैम लेट हो गए क्योंकि बेतवा पुल पर भारी – भरकम जाम लग गया था। डम्फरों की भौत लम्बी – लाइन लग गई थी। फिर भी साढ़े सात बजे तक टूशन लौट आए। अभी आदा घण्टे ही देरी हुई थी।

स्टूडेंटों से सर जी ने पूछाँ –

” क्या पढ़ना हैं ? पुल पर अगर जाम न लगो होतो तो टाइम से आ जाते। ”

साक्षी बोली –

” सर जी! आज परिसंचरण तन्त्र के बारे में समझा दो और ह्रदय का डायग्राम भी। ”

” ठीक है। ”

सर जी ने चालीस मिनट में ह्रदय के दो डायग्राम बोर्ड पर बनाकर तैयार कर दिए। इनके बारे में डिटेल में बताकर बच्चों को भी डायग्राम की बार – बार प्रैक्टिस करने को कहा। फिर परिसंचरण तन्त्र पर गहन चर्चा की।

छुट्टी में साक्षी अपनी बेस्ट फ्रेंड सोनाली से
बोली –
” यार तूँ एक हफ्ते से टूशन क्यों नहीं आ रही थी। किते गई थी तूँ। तेरे बिना हमाओ मन ही नहीं लग रओ तो। ”

” अरे यार ! मैं अपने ननिहाल गई थी, खजुराहो। छोटे मामा सत्येंद्र की शादी में। शादी में बड़ा मजा आया। मामा सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और मामी भी सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। दोनों क्लासमेट रहे हैं। आईआईटी दिल्ली से कम्प्यूटर साइंस में बीटेक किया है। मैं मामा से पाँच साल बाद मिली थी। मामा घर पर कम ही आते थे। जब वो आते थे। तब मैं नहीं जा पाती थी और जब मैं जाती थी तब उनकी छुट्टियांँ नहीं होती थीं। भले फोन पर डेली बात हो जाती थी और कभी-कभार वीडियो-कॉल भी।

शादी पर मामा जी ने मुझे आईफोन-एक्स गिफ्ट किया है। मामा जी बोल रहे, दो – चार महिने मे लैपटॉप भी दिलवा देंगे। बहुत चाहते है मामा हमें और अपनी बहिन दीपा को। हमाई मामी बहुत खूबसूरत हैं। बिल्कुल अप्सरा जैंसीं और मामा भी कोनऊ हीरो से कम नईं लगत। मामी में जितनी फिजिकल ब्यूटी है, उतनी ही स्पीरिचुअल ब्यूटी। माइंड से बहुत क्रिएटिव हैं। उर्दू में शायरियांँ लिखती हैं, हिन्दी में उपन्यास तो अंग्रेजी में रोमेंटिक कविताएँ। मामी कॉलेज में स्टूडेंट ऑफ द ईयर भी रह चुकीं है और मिस फ्रेशर भी। वो मॉडलिंग भी करती हैं और सोशल एक्टिविस्ट भी हैं। मामा ने भी हिन्दी में चार कहानियांँ और बुंदेली में कविता – संग्रह लिखा है। वो अभी अंग्रेजी में उपन्यास लिख रहे हैं। मामा – मामी दोनों में एक जैसे टेलेन्ट हैं। भगवान ने उन्हें बड़े सोच – समझकर बनाया होगा। ”

” अच्छ! और ये बता कि तेई एग्जाम की तैयारी कैसी चल रही है ? मुझे तो ट्रिकनोमेट्री के सवाल बिल्कुल भी समझ में नहीं आ रहे और न ही फिजिक्स के न्यूमेरिकल लग पा रहे। ”

” यार ! मेरी तैयारी तो बहुत अच्छी चल रही है। कल से तू मेरे घर आया कर शाम को चार बजे । हम तुझे सवाल और न्यूमेरिकल समझा देंगे। अपन दोनों सात बजे तक अच्छे से पढ़ लिया करेंगे। ”

” ओके! बाय-बाय। आती हूँ कल से तेरे यहाँ, आज मार्केट जाना है, ड्रेस खरीदने…। ”

” चलो, ठीक है। कल से जरूर आना…। ”

अगले दिन से साक्षी रोजाना शाम चार बजे सोनाली के घर जाने लगी। सोनाली का घर किसान बाजार में साक्षी के घर से सात – आठ सौ मीटर दूर था। ढाई – तीन घंटे दोनों लगन से पढ़ाई करने लगीं। सोनाली के परिवार में उसके मम्मी – पापा और बड़े भाई हर्ष समेत चार सदस्य थे। मम्मी और पापा दोनों शहर के बरुआसागर राजकीय इंटर कॉलेज में लेक्चरर थे। पापा सोशलॉजी पढ़ाते थे तो मम्मी बायलॉजी।

अभी हर्ष बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी, झाँसी में बी० एस०सी० फॉरेंसिक साइंस, फर्स्ट ईयर में था। वो यूनिवर्सिटी हॉस्टल में ही रहता था। लेकिन हर शनिवार को शाम को घर आता था और रविवार की शाम को वापिस लौट जाता था। साक्षी को देखकर वो मोहित हो गया और उससे बहुत प्यार करने लगा।

मार्च के आखिरी में साक्षी पऔर सोनाली की परीक्षाएँ समाप्त हुईं। दोनों के पेपर बहुत अच्छे हुए। जून के दूसरे सप्ताह में रिजल्ट आया तो सोनाली चतुर्वेदी स्कूल में सेकेंड टॉपर रही और साक्षी पाल ने जिला टॉप किया। दोनों के घर पर बधाई देने वालों का तांता लगा रहा। साक्षी के माता – पिता किसान थे। साक्षी और सोनाली फिर से एक ही क्लास में पढ़ने लगीं और अब साक्षी सेशन की शुरूआत से ही सोनाली के साथ उसके घर पर पढ़ने लगी।

एक दिन हर्ष ने साक्षी को प्रपोज कर दिया और साक्षी ने खुशी – खुशी इसका प्रपोजल असेप्ट भी कर लिया है। दोनों एक – दूसरे से बहुत प्यार करने लगे। इन दोनों की प्रेमीकहानी की भनक दो साल तक किसी को न लगी। यहाँ तक की सोनाली को भी नहीं। दोनों की व्हाट्सएप पर चैट होने लगी और कभी – कभार वीडियो कॉलिंग भी हो जाती। रविवार को साक्षी हर्ष से तीन – चार घंटे बात करती है और उसके प्यार में पागल रहती है।

जब साक्षी इंटरमीडिएट में पढ़ रही थी तब उसने प्री – बोर्ड एग्जाम के एक महीना पहले हर्ष के साथ झाँसी की श्रद्धा होटल में रोमांस किया। हर्ष ने दो हजार में ओयो से ए०सी० रूम बुक किया था।

साक्षी इंटरमीडिएट में फर्स्ट डिवीजन से पास हुई। रिजल्ट के अगले दिन जब सोनाली ने उससे पूछा –

” यार! हाईस्कूल में तो तूने जिला टॉप किया था और अब स्कूल टॉप भी न कर पाई। क्या हुआ तुझे ? ”

” कुछ नहीं यार! बस प्यार के पागलपन में ये सब हुआ है। प्यार के सिवाय और कुछ अच्छा ही नहीं लगता। किताब तो उठाई ही नहीं जाती । दिन – रात व्हाट्सएप चैटिंग में ही निकल जाता है। ”

” अच्छा! किसके प्यार में पागल हो तुम ? ”

” जानू हर्ष ”

” कौनसा हर्ष ? ”

” तुम्हारा भाई ”

” ओह! ”

” यार! सोनाली मेरी लवस्टोरी के बारे में किसी को भी मत बताना, प्लीज। ”

” नहीं बताऊंगी। ”

” प्रोमिस! ”

” हओ प्रोमिस! ”

शाम को डिनर के वक्त सोनाली बेझिझक होकर साक्षी और हर्ष की लवस्टोरी अपने मम्मी – पापा को सुनाती है। जब हर्ष भी मम्मी के बगल में बैठा खाना खा रहा होता है। लवस्टोरी सुनकर वो भौचक्का रह जाता है। मम्मी और पापा दोनों उससे पूँछते हैं –

” ये सब कब से चल रहा है ? ये हो रही है तुम्हारी बी० एस० सी० फोरेंसिक साइंस। ऐसे पास कर लोगे फॉरेंसिक इंस्पेक्टर का एग्जाम।
कल से कॉलेज मत जाना। रहो यहीं घर पर…। ”

” कुछ नहीं पापा! अभी डेढ़ – दो साल ही हुआ है। कुछ ज्यादा नहीं। ”

” नालायक! डेढ़ – दो साल ज्यादा नहीं है तो क्या तुझे बीस – तीस साल ऐसे ही रहना है। एडवोकेट हितेंद्र की बेटी राधा से तेरा रिश्ता तय कर रहा हूँ, जो तेरी ही क्लासमेट है। शादी होने पर ही तेरी अक्ल ठिकाने पर लगेगी। ”

हर्ष थोड़ी देर चुप रहकर चिल्लाकर बोलता –

” हमें नहीं करनी किसी और से शादी। करूँगा तो सिर्फ साक्षी से ही……। ”

” उससे तो तुम्हारी शादी होने से रही। तुम्हारी साक्षी से कभी भी शादी न होने दूँगा…..।”

” देखता हूँ, कैसे नहीं होने देंगे आप ? ”

इतना कहकर हर्ष अपने कमरे में चला जाता है और फिर आधी रात को साक्षी को वीडियो कॉल करता है। वो भी उसकी कॉल का इंतजार कर रही होती है। हर्ष पापा – मम्मी के साथ जो बातें हुईं, वो सब बताता है और कहता है –

” मेरे पापा बोल रहे हैं। तुम्हारी शादी साक्षी से कभी भी नहीं होने देंगे। अब तुम बताओ। क्या करना चाहिए हम लोगों को ? ”

” तुम जैसा चाहो जानू। हम तो तुम्हारी हर बात में राजी हैं। ”

” अच्छा! ठीक है फिर तो।
चलो अपन घर से फरार होकर नई जिंदगी की शुरूआत करते हैं…। ”

” ओके जानू! लव यू। बाय। गुडनाइट। कल मिलते हैं अपन…। ”

” ओके स्वीटी। लव यू। बाय…। ”

घरवालों की जिंदगी की परवाह किए बिना बरुआसागर की दो जिंदगियाँ, हर्ष और साक्षी रविवार की शाम में अपनी जिंदगी की नई पारी की शुरूआत करने के लिए घर से फरार हो गईं…..।

सोमवार की सुबह ओरछा में हर्ष और साक्षी ने बेतवा की पावन धारा में स्नान करने के बाद रामराजा सरकार को फूल – माला और प्रसाद चढ़ाकर दर्शन किए और वहीं राम भगवान और सीता मैया को साक्षी मानकर एक – दूसरे के गले में जयमाला डालकर विवाह रचाया। इसके बाद दोनों महल – किले घूमने लगे। घूमते – घूमते दोपहर हो गई और भूख भी लग आई तो फिर उन्होंने कुशवाहा भोजनालय में खाना खाया और आराम करने के लिए यादव होटल में जा ठहरे।

दोनों शाम में फिर घूमने निकले। इस सुहावनी शाम में नई जिंदगी के खूबसूरत पलों को कंचना घाट से नौका विहार करके संजोया। साक्षी और हर्ष की ये पहली नौका विहार थी। इससे पहले इन्होंने कभी नौका विहार नहीं की था।
नौका विहार करने के बाद, दोनों प्रकृति के खूबसूरत नजारों को देखने के लिए नदी के ठंठे – ठंठे पानी में पॉंव डुबोकर घाट किराने की बेंच पर सुकुन से बैठकर बतियाने लगे –

” यार! साक्षी, अब यहाँ से कहाँ चलना चाहिए अपन को ? ”

” तुम जहाँ ले चलो… ”

” चलो, फिर तो अपन झाँसी चलते हैं। ”

” ठीक है…।”

इसके बाद हर्ष ने अपने दोस्त मोहित रजक को फोन किया –

” हैलो! मोहित भाई। हम और साक्षी आ रहे हैं तुम्हारे रूम पर अभी। ”

” ठीक है भाई। आ जाओ…।”

बस से रात आठ बजे दोनों झाँसी आ गए और साढ़े आठ बजे आंतियाँताल मोहित के रूम पर पहुँच गए। पहुँचते ही मोहित है दोनों को नमस्ते की –
” नमस्ते हर्ष भाई, नमस्ते भाभी जी।”

” नमस्ते भाई, नमस्ते भैया जी। ”

इसके बाद, तीनों ने मिलकर खाना बनाकर खाया और फिर आधी रात तक बतियाते रहे।
कल सुबह हर्ष और साक्षी के लिए यहीं आंतियाँताल में किराए के कमरे की व्यवस्था करने का तय हुआ।

कई लोगों के यहाँ कमरा ढूँढा लेकिन घर से फरार होकर शादी करने वाले इन अठारह – बीस साल के लड़की – लड़का को कोई भी किराए पर कमरा देने को तैयार नहीं हुआ। बड़ी मशक्कत करने के बाद गुप्ता जी के यहाँ तीन हजार रुपए हर महीने के किराए पर कमरा मिल गया और आज शाम से ही शिफ्ट होने की बात हो गई।

गुप्ता जी के यहाँ दोनों हँसी – खुशी रहने लगे। इस समय हर्ष के पास पन्द्रह – सोलह हजार रुपए थे और पाँच – छह हजार साक्षी के पास भी थे। इतने में दो – ढाई महीने आराम से खर्चा चल जाए। इसी हिसाब से ये काम कर रहे थे।
अच्छा करियर बनाने के लिए दोनों मिलकर रोजीना गंभीरता से पढ़ाई भी कर रहे थे।

एक महीने के बाद, हर्ष का फॉरेंसिक इन्स्पेक्टर का रिजल्ट आया। उनसे अच्छे नम्बरों से एग्जाम पास कर लिया और अब फॉरेंसिक इन्स्पेक्टर बन गया। हर्ष, साक्षी और मोहित ने इस खुशी में पार्टी मनाई और इसी बीच मोहित ने हर्ष के पापा को फोन किया –

” नमस्ते चाचाजी! ”

” नमस्ते मोहित बेटा।

” चाचाजी! अपना हर्ष फॉरेंसिक इन्स्पेक्टर बन गया। अभी – अभी रिजल्ट देखा हमने…। ”

” अच्छा! बहुत बढ़िया। और हर्ष कहाँ से इस समय…।”

” हमारे पास ही है। ”

” हर्ष साक्षी को लेकर जब घर से फरार हुआ था तब हमने तुम्हें फोन किया था तो तुम बोल रहे थे कि चाचाजी, हमें नहीं पता कहाँ है हर्ष। हमें हर्ष से क्या लेना – देना…। उस दिन से एक महीने बाद आज तुम फोन कर रहे हो और…।”

” सॉरी चाचाजी! उस समय आप गुस्से में थे और हर्ष भी परेशान था इसलिए दोस्ती की खातिर आपसे झूठ बोला। पुरा महीने हमने हर्ष और साक्षी का पूरा ख्याल रखा…।”

” अच्छा ठीक है। चलो हर्ष से बात कराओ। ”

” हओ चाचाजी! अभी हाल कराते हैं। ”

” बधाई हो! बेटा। तुम तीनों घर आओ शाम तक। आ जाओगे या हम लेने आएँ…। ”

” धन्यबाद! पापा…सॉरी पापा, उस दिन के लिए हमने आपसे ऊँची आवाज में बात की। आपके मना करने के बावजूद पाल समाज की लड़की साक्षी से शादी रचाई और आप लोगों को बिना बताए घर से फरार हुआ…।”

” कोई नहीं बेटा… इस उम्र में गलती हो जाती है। अब आराम से घर आ जाओ, यहीं सब बातें करते हैं अपन…। ”

” ठीक है पापा…। ”

शाम चार बजे मोहित की बाईक से हर्ष, साक्षी और मोहित घर पहुँच जाते हैं और घर से फरार जिंदगियाँ अपने घर वापिस आ जाती हैं।
हर्ष और साक्षी नई जिंदगी की शुरुआत करने की बधाई दी जाती है और उनका स्वागत किया जाता है। साक्षी को चतुर्वेदी परिवार अपनी बहु स्वीकार कर लेता है। साक्षी के घरवाले भी हर्ष के फॉरेंसिक इन्स्पेक्टर बनने की बात सुनकर हर्ष के घर आ जाते हैं और उसे बधाई देकर अपना दामाद स्वीकार कर लेते हैं। अब से साक्षी और हर्ष के घरवालों के बीच की तनातनी दूर हो जाती है। दोनों परिवार रिश्तेदार बन जाते हैं…।

जब हर्ष साक्षी को लेकर घर से भागा था तो मुहल्ला – पड़ोस वाले, रिश्तेदार और समाज वाले इस तरह तंज कश रहे थे –

” यादव जी! देखो तो चतुर्वेदी मास्साब का बेटा पाल की लड़की को लेकर घर से फरार हो गया…।”

” राखी की अम्मा! देखो तो अपने मिलान वाके पाल साब की बिटिया ऊ पंडित के मौड़ा के संगे प्यार में फरार हो गई…।”

हर्ष के फॉरेंसिक इन्स्पेक्टर बनने पर आज वही मुहल्ला – पड़ोस वाले, रिश्तेदार और समाज वाले आपस में खुशी – खुशी बतिया रहे हैं –

” अपने चतुर्वेदी जी का बेटा अफसर बन गया,
फॉरेंसिक इन्स्पेक्टर की सर्विस मिली है उसे… ”

” पाल साब की बिटिया के तो भाग्य चमक गए…पंडित खानदान की बहू बन गई और पति भी नौकरी वाला मिल गया…।”

‘आज के समाज के हाल’ मुद्दे पर मीडिया में हर्ष और साक्षी के प्रेमप्रसंग का जिक्र करते हुए सामाजिक कार्यकर्त्ता दीपचंद कुशवाहा उर्फ दीपू भैया कहते हैं –

” हर्ष और साक्षी के घर से फरार होने के वक्त और हर्ष की नौकरी के बाद दोंनो के घर वापिस लौटने के वक्त, समाज की टिप्पणियाँ आज के समाज के दोगले चरित्र को उगाजर करती हैं…।
समाज की परवाह किए बगैर आज के युवाओं – युवतियों अपने विवेक से हर काम करना चाहिए। युवा – युवतियों को ज्यादा से ज्यादा पढ़ाई करनी चाहिए क्योंकि इस समाज में, देश में, दुनिया में पढ़े – लिखे लोगों के लिए सब जायज है। गवारों – आवारों के लिए ही समाज के नियम – कानून बने हैं और जिनका उन्हें पालन हरहाल में करना ही चाहिए क्योंकि शिक्षित लोग ही सारी दुनिया चलाते हैं इसलिए यदि किसी को परम्पराएं तोड़कर नई शुरुआत करनी है, तो उसे उच्च शिक्षा पाकर समाजहितैषी, बदलाओकारी काम करने चाहिए, चाहे सरकारी पद पर रहकर या फिर नेता बनकर। जै हो….। “

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