scs poem bharosa nahi

इंसान का इंसान को
ही भरोसा नहीं है।
मौत का भी अब
किसी को भरोसा नहीं।
कब किसकी आ जाये
कोई कह सकता नहीं।
अब तो चलते फिरते भी
छोड़कर चले जा रहे हैं।।

हँसते हुए निकले थे
सुबह अपने घर से वो।
शाम हुई तो इंतजार था
उनके वापिस आने का।
पर एकाएक संदेश आया
की वो अब नहीं रहे।
इस कल युग और
मोह माया के संसार में।।

कैसे हँसता खिलखिलाता हुआ
परिवार देखते देखते मिट गया।
पत्नी,बच्चे और माँ-बाप का
सहारा कैसे उनसे छिन गया।
विधाता का भी खेल देखो
बड़ा ही निराला है।
कब किसको और कहाँ से
अपने पास बुला लेता है।।

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