कविता : पर्यावरण

मेरे भी दिल मे अभी, उम्मीदे बहुत बाकी है। बस सभी का साथ चाहिए। पर्यावरण को बचाने के लिए । इंसानों का साथ चाहिए। जो हर मोड़ पर साथ दे, इसे बचने के लिए।। तप्ती हुई इस धूप में,   शीतल… Read More

कविता : पेड़ लगाओ

आओ आओ पेड़ लगाओ प्रदूषण को देश से भगाओ पेड़ इन्सान के जीवन  की कहानी है ये बात ऋषि-मुनि-वैज्ञानिक ने मानी है पेड़ है  तो ये जहाँ  है पेड़ नहीं  तो ये जहाँ  नहीं चींटी हो या हाथी पेड़ सबका… Read More

कविता : जनता सड़क पर

तन-लोहा मन गलता है, सड़कों पर मजदूर पलता है। मीलों का सफर हैं नंगे पाँव, लौट चलें आ अपने गाँव बहुत हो गया धूप-छांव लौट चलें आ अपने गाँव! छोड़ अरे यह तेरा-तेरी शहरों की यह हेरा-फेरी सड़क किनारे मेरी… Read More

कविता : पगडंडी पर चलकर

घने-गहरे जंगल से गुजरती है पगडंडी कुछ बिखरे पत्तों की सरसराहट पहिये की गति भारी है तरुशिखा पर सुनहरी-आभा-सी डोलती घने जंगलों की छिद्रित परछाइयाॅ-सी मुसकुराकर बोलती रंग-बिरंगे पंखों की फड़फड़ाहट कुछ घरौंदों से उभरती चहचहाहट मृदंग-सी कलकल करती चंचल-अल्हड़… Read More

कविता : महायुद्ध के दौरान

इतिहास के पन्नों से टूटा अतीत के कुरुक्षेत्र का यथार्थ की वैकल्पिक जमीन पर अश्वत्थामा का ब्रह्मस्त्र-सा मानवता का अवकाश विषाणुओं का वीभत्स कालखंड-सा अदृश्य भयावह क्षत-विक्षत चेहरों-सा यम-नगरी की खौफनाक मृदंगों-सी काल-रात्रि और बिना रणभेरी के गर्जना श्वासों की… Read More

कविता : गाँव की ओर

सर पर गठरी तेज धुपहरी  रक्त निकलता, फूटा छाला मन घबराये कदम बढ़ाये कहां मिलेगी छांव कैसे रखें कदम धरा पर जलते मेरे पाॅव… हाय!जलते मेरे पाॅव ! मैं भारत की सच्ची तस्वीर फूट गई मेरी तकदीर ए. सी. में… Read More

कविता : ऐ उम्र

ऐ उम्र! तुम इतनी निश्चित जितनी मृत्यु अनिश्चित मैं रहा धरा पर विभ्रांत समर-सा पर कर न सका यह सुनिश्चित। मेरा अंश बहती गंगा-सा मिल न सका सु-परिचित जल-जल कर मैं राख बन गई जब तीव्र अग्नि हो प्रज्वलित नेत्र-भ्रुकुटी… Read More

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कविता : अजनबी पर दोस्त

ज़रा सी दोस्ती कर ले.., ज़रा सा साथ निभाये। थोडा तो साथ दे मेरा …, फिर चाहे अजनबी बन जा। मिलें किसी मोड़ पर यदि, तो उस वक्त पहचान लेना। और दोस्ती को उस वक्त, तुम दिल से निभा देना।।… Read More

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कविता : संघर्ष

वो चला था अपने घर को मगर पहुंच पाया क्या ? कितना कष्ट सहा है उसने कभी बताया क्या..? सारी मेहनत निचोड़ दी उसने पैरों को चलाने में, सांस फूलती रही उसकी अपनी व्यथा को बताने में..! अपनी मंज़िल बताने… Read More

कविता : दिल के दर्द को पढ़ो

आज कल कम ही, नजर आते हो। मौसम के अनुसार, तुम भी गुम जाते हो। कैसे  मैं कहूँ तुमसे की, मुझे बहुत याद आते हो।। दर्द दिल में बहुत है, बयां कर सकता नही। हम सफ़र बिछड़ गया, पर कह… Read More