इतिहास के पन्नों से टूटा
अतीत के कुरुक्षेत्र का
यथार्थ की वैकल्पिक जमीन पर
अश्वत्थामा का ब्रह्मस्त्र-सा
मानवता का अवकाश
विषाणुओं का वीभत्स कालखंड-सा
अदृश्य भयावह क्षत-विक्षत चेहरों-सा
यम-नगरी की खौफनाक मृदंगों-सी काल-रात्रि
और बिना रणभेरी के गर्जना
श्वासों की परिधि के बीच
वैश्विक पटल पर
स्पंदन-कंपन-सी जिजीविषा
पिंजरे में कैद
परिंदों की फड़फड़ाहट
निःश्वास होती जीवन की संवेदना
और केंचुली उतारती आधुनिक कविता
नये पृष्ठ पर रक्त की स्याह से
खोजती है फिर से
श्वासों की गंध के मध्य
महाबंद के प्रतिबंध
अस्तित्व के अक्षर
और वैकल्पिक जमीन पर
स्वयं का हस्ताक्षर!