घने-गहरे जंगल से
गुजरती है पगडंडी
कुछ बिखरे पत्तों की सरसराहट
पहिये की गति भारी है
तरुशिखा पर सुनहरी-आभा-सी डोलती
घने जंगलों की छिद्रित परछाइयाॅ-सी
मुसकुराकर बोलती
रंग-बिरंगे पंखों की फड़फड़ाहट
कुछ घरौंदों से उभरती चहचहाहट
मृदंग-सी कलकल करती चंचल-अल्हड़
छलछलाती पाथरों से डगमगाती-सी
दृग-भ्रमित, उत्साह-वेग-सी स्पर्धा
हिमालय की नदियों का अलमस्त शोर है
रात्रि-गर्भ से निकलता भोर है
मन-मोहिनी-सी स्पंदित यह प्रीति है
यह प्रारंभ से दिवस-बेला की रीति है
मधुर-आलिंगन के सुरों की तान है
कोयल के गीतों की पहचान है
हाँ घने-गहरे जंगलों के मध्य
सरसराती हवाओं से गुजरती
दो-पहियों की सवारी का गीत है
हाँ जंगल की परिधि के बीच
जीवन का संगीत है

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