struggle
वो चला था अपने घर को
मगर पहुंच पाया क्या ?
कितना कष्ट सहा है
उसने कभी बताया क्या..?
सारी मेहनत निचोड़ दी
उसने पैरों को चलाने में,
सांस फूलती रही उसकी
अपनी व्यथा को बताने में..!
अपनी मंज़िल बताने को
उसे रिपोर्टरों द्वारा उकसाया गया,
जब साधन उपलब्ध थे
उसे घर क्यों ना पहुंचाया गया..?
क्या मिला आखिर तुम्हे
दो भागों में बंटकर ?
कोई पहुंचा सुकून से
तो कोई पहुंचा कटकर..!
जो पहुंचे सुकून से
वो घर के बाहर घूम रहे,
जो पहुंचे दहशत में
वो माटी को अपनी चुम रहे..!
कोई कहता कर्म अच्छे थे
कोई कहता नसीब था,
लौटकर जो घर ना पहुंचा
वो बस एक ग़रीब था..!
किसी की दशा को मुद्दा बनाना
मेरा यह उद्देश्य नही,
मगर हालत इतनी दयनीय है
जितना भी लिखूँ है, शेष नही..!

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *