पुस्तक शीर्षक : धूप-छाँव
लेखक : उदय राज वर्मा ‘उदय’
मूल्य : 250 रूपये
प्रकाशक : द इंडियन वर्डस्मिथ, पंचकुला

‘धूप-छांव’ काव्य संग्रह के रचयिता कविवर उदयराज वर्मा ‘उदय’ का जन्म मल्लिक मोहम्मद जायसी की धरा अमेठी (उत्तरप्रदेश) में होलिका दहन के पावन दिवस पर हुआ । जन्म की तिथि और पावन धरा दोनों अपने आप में महत्वपूर्ण है। जिसका प्रभाव कविवर के प्रतिभा पर स्पष्ट रूप से दिखता है। उदयराज जी का साहित्य से लगाव बचपन से है । वो कक्षा बारहवीं से साहित्य सृजन कर रहें है। कवि की अनेक रचनाएं समाचारपत्र पत्रिकाओं और साझां संकलन में प्रकाशित हो चुकी है। ‘धूप-छांव’ एकल काव्यसंग्रह कवि की पहली पुस्तक है। जिसमें साहित्य के अनेक विविध विधाओं पर कविवर की लेखनी दौड़ी है। शीर्षक का तात्पर्य और कवि का आशय के संदर्भ में मैं यही कहुंगा की धूप-छांव का अनुभव पृथ्वी के हर जीव करते है। अपने प्रकृति और शरीर के आकृति-बनावट के अनुसार इसकी आवश्यकता भी हर प्राणी को है। कविवर उदयराज वर्मा ‘उदय’ द्वारा सृजित साहित्य, अब काव्य संग्रह के रूप में भारतवर्ष के जानें-मानें साहित्यकर और सम्पादक श्री विकास शर्मा ‘दक्ष’ के मार्गदर्शन और दिशानिर्देशन में The Indian Wordsmith पंचकुला हरियाणा से हो रहा है जो अति प्रसन्नता और गौरव की बात है।

साहित्य और साहित्यिक अनुभूति की अभिव्यक्ति जब पाठकों को सोचने पर विवश कर दे तो समझों, लेखक का लेखनी की क्रियाशीलता, यथार्थ की ओर अग्रसर है। अक्सर देखा जाता है कि जब कोई भी कलमकार कलम उठाता है तो सर्वप्रथम उसके मनमस्तिष्क पर बना परिदृश्य को परिमार्जित करने के लिए अन्तर्मन में द्वंद चलता है। और उस द्वंद से लड़ते-झगड़ते, जो सार निकलता है तो वह पद्यांश या गद्यांश के रूप में रचना बनती है, जिसे संग्रह कर रचनाकार पुस्तक का स्वरूप देते हुए साहित्यिक कृति प्रकाशित करता है। कला और साहित्य का सम्बंध वर्षो पुराना है। गायन एक कला है और लेखन साहित्य। जब ये दोनों गुण एक ही व्यक्तित्व में समाहित हो जाय तो मानों सोने पर सुहागा। कुछ ऐसा ही बातें कवि और इस काव्य संग्रह में देखने को मिलता है। इस काव्य संग्रह में विशेषतः कवि की अनुभूति प्रेमपरक पूर्ण जान पड़ती है। ज्यादातर रचनाएं इसी संदर्भ को रेखांकित करती है ।

जैसे-
यारा ये बरसात का मौसम है,
तेरे बिन जिसका मजा बेकार है ।
‘उदय’ इस बारिस में आपके साथ,
भीगने को मचल रहा मेरा मन है ।

(मुक्तक)
तुझसा कोई पागल,
दीवाना नहीं देखा ।
‘उदय’ पर इजहार
करते,नहीं देखा ।

(क्षणिका)
कवि की अवस्था अभी युवापन की है जिसमें ऐसा भाव आना एक स्वभाविक क्रिया है। रचनाओं का अध्ययन करने से ऐसा लगता है की कविवर के भी अन्तर्मन में प्रेमाकांक्षा जगी होगी जिसकी अभिव्यक्ति साहित्य के माध्यम से कर रहे है। यदि अमेठी को ‘जायसी’ का धरा कहा जाता है तो जयसी जी द्वारा वर्णित पद्ममावत में नखशिख वर्णन में भी श्रृंगार और प्रेम की प्रधानता है। हालांकि मैं यहाँ तुलनात्मक दृष्टि से कुछ भी नहीं कहना चाहूँगा। कवि उदय और इनकी कृति जायसी जी से कोसों दूर है। कविवर का प्रयास सराहनीय और प्रसंसनीय है। लेखन की गतिशीलता के लिए सृजन आवश्यक है। और उस सृजन साहित्य को संग्रहीत और सुरक्षित करने के लिए पुस्तक का स्वरुप देना, हर कलमकार का नैतिक दायित्व है। इस प्रयास के लिए आदरणीय श्री उदयराज ‘उदय’ जी को शुभकामनाएं और साधूवाद।

समीक्षक
राज नारायण द्विवेदी
अम्बिकापुर छत्तीसगढ़
Raj Narayan divedi

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