है प्यारा बहुत देश हमारा हिन्दुतान। है संस्कृति इसकी सबसे निराली है। कितनी जातिधर्म के, लोग रहते यहाँ पर। सब को स्वत्रंता पूरी है, संविधान के अनुसार।। कितना प्यारा देश है हमारा हिंदुस्तान। इसकी रक्षा करनी है आगे तुम सबको।।… Read More
कविता : कल्याण का पथ
छोड़कर सब कुछ अपना शरण तुम्हारी आया हूँ। अब अपनाओं या ठुकराओं तुम्हें ही निर्णय करना है। मेरी तो एक ही ख़्यास गुरुवर तुम से है। की अपने चरणों में मुझे जगह तुम दे दो।। किया बहुत काला गोरा मैंने… Read More
कविता : घर गृहस्थी समझा
न गम का अब साया है, न खुशी का माहौल है। चारों तरफ बस एक, घना सा सन्नाटा है। जो न कुछ कहता है, और न कुछ सुनता है। बस दूर रहने का, इशारा सबको करता है।। हुआ परिवर्तन जीवन… Read More
कविता : आलिंगन
पृथक् थी प्रकृति हमारी भिन्न था एक-दूसरे से श्रम ईंट के जैसी सख़्त थी वो और मैं था सीमेंट-सा नरम भूख थी उसको केवल भावों की मैं था जन्मों-से प्रेम का प्यासा जगत् बोले जाति-धर्म की बोली हम समझते थे… Read More
कविता : अभी भी वक्त है
ये कैसा दौर है अभी सब दर्द दर्द है, खामोश आँसुओं के मुख विषाद सर्द है। सब जी रहे तड़प-तड़प कुसूर का पता, लगा रहे सभी सम्भल अभी वो लापता। जब मौत नाचती है सिर पे यादें लौटती, किया था… Read More
कविता : तेरा मेरा हाल
किसी के दिल को प्यार से, जितोगे तो प्यार पाओगें। दिल की गहराइयों में, तुम खो जाओगे। और अपने को प्रेमसागर में डूबा पाओगे। और जिंदगी में तुम, प्यार ही प्यार पाओगे।। प्यार क्या होता है, जरा तुम तो बताओ।… Read More
कविता : सफर कठिन है
पग-पग पर कांटे बिछे चलना हमें पड़ेगा। कठिन इस दौर में हमको संभालना पड़ेगा। दूर रहकर भी अपनो से उनके करीब पहुँचना पड़ेगा। और जीवन के लक्ष्य को हमें हासिल करना पड़ेगा।। जो चलते है कांटो पर मंजिल उन्हें मिलती… Read More
कविता : गरीबी की परिभाषा
गरीबी क्या होती है किसी किसान से पूछो। ये वो शख्स होता है जो खाने को देता अन्न। परन्तु इसकी झोली में नहीं आता उसका हक। इसलिए यही से गरीबी का खेल शुरू हो जाता है।। कड़ी मेहनत और लगन… Read More
कविता : बेरोजगारी की हद
शिक्षित होकर भी देखा घर पर रहकर भी देखा सभी कहते मै बेरोजगार कोई कहता काम करो। शिक्षित घरेलू क्रियाकलापों में असहाय सभी शिक्षित को रोजगार भी नहीं। मजबूर शिक्षित रोजगार की तलाश में गुमसुम जैसा चाहे वैसा नहीं दर… Read More
कविता : पत्थर की कहानी
कहानी पत्थर की सुनता हूँ तुमको। बना कैसे ये पत्थर जरा तुम सुन लो। नरम नरम मिट्टी और रेत से बना हूँ मैं। जो खेतो में और नदी के किनारे फैली रहती थी। और सभी के काम में बहुत आती… Read More