न गम का अब साया है,
न खुशी का माहौल है।
चारों तरफ बस एक,
घना सा सन्नाटा है।
जो न कुछ कहता है,
और न कुछ सुनता है।
बस दूर रहने का,
इशारा सबको करता है।।
हुआ परिवर्तन जीवन में,
इस कोरोना काल में।
बदल दिए विचारों को,
उन रूढ़िवादियों के,
जो घर की महिलाओं को,
काम की मशीन समझते थे।
और घर के कामो से सदा,
अपना मुँह मोड़ते थे।।
घर में इतने दिन रहकर,
समझ आ गये घर के काम।
घर की महिलाओं को
कितना होता है काम।
जो समयानुसार करती है,
और सबको खुश रखती है।
पुरुष वर्ग एक ही काम करते है,
और उसी पर अकड़ दिखाते है।।
देखकर पत्नी की हालत,
खुद शर्मिंदा होने लगा।
और बटांकर कामों में हाथ,
पतिधर्म निभाना शुरू किया।
जिससे पत्नी का मुरझाया चेहरा,
कमल जैसा खिल उठा।
और मुझे सच्चे अर्थों में,
घर-गृहस्थी समझ आ गया।।