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ये कैसा दौर है अभी सब दर्द दर्द है,
खामोश आँसुओं के मुख विषाद सर्द है।

सब जी रहे तड़प-तड़प कुसूर का पता,
लगा रहे सभी सम्भल अभी वो लापता।

जब मौत नाचती है सिर पे यादें लौटती,
किया था जुर्म व्यर्थ बात ये कचोटती।

कुदरत है मेहरबां अभी भी बात ये बड़ी,
सुधर जा मित्र वर्ना काल सर्पिणी अड़ी।

विनाश ही विनाश तेरे हिस्से आयेगा,
अभी भी वक्त है समझ सम्भल भी जायेगा।

प्रकृति के विचलन का कारण तू ही है बना,
चाहती वो क्या समझ तू उसकी भावना।

तेरे लिए हे मानव सारी सम्पत्ति मेरी,
जी भर के भोग ले सहर्ष अनुमति मेरी।

तेरे लिए दामन की हर छटा सुहावनी,
पर नष्ट करना सोचना मत है चेतावनी।

सँवारना ही लक्ष्य रख विध्वंश त्याग दे,
सृष्टि को निज कर्म का थोड़ा भी भाग दे।

तो जान ले कि स्वर्ग स्वप्न भूल जाएगा,
यथार्थ में उसे बहुत करीब पाएगा।

दुलार कर रही तुझे तू पुत्र है मेरा,
ये फूल तितलियाँ ये सारा बाग ही तेरा।

सृजन किया तुझे किसी ने जानता है तू,
अस्तित्व उसका मन ही मन में मानता है तू।

तो हो कृतज्ञ उसका भी कुछ मान तो बचा,
सम्पूर्ण प्राणियों में श्रेष्ठ ध्यान मन में ला।

प्रसन्न कर उसे तो मैं प्रसन्न ही प्रसन्न,
न तू रहे गरीब और न मैं रहूँ विपन्न।

कर कर्म होगी तेरी जानदार जिंदगी,
तू जी ले मेरे लाल शानदार जिंदगी।

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