शिक्षित होकर भी देखा
घर पर रहकर भी देखा
सभी कहते मै बेरोजगार
कोई कहता काम करो।
शिक्षित घरेलू क्रियाकलापों में असहाय
सभी शिक्षित को रोजगार भी नहीं।
मजबूर शिक्षित रोजगार की तलाश में गुमसुम
जैसा चाहे वैसा नहीं दर पे ठोकर खाए।
करे भी क्या सिर्फ घर का ही आसरा
जो कुछ मिला उसी में संतुष्ट।
कुछ कर नहीं सकते वक्त के थपेड़े झेल चुके
डिग्रियां बस्ते में बन्द जिसकी चाह उसकी राह।
चलो करें ये संकल्प अपना ही कोई धंधा आजमाएं
छोड़ चलो भीड़ की धक्का मुक्की के पार।