उस बहती नदी को समीप से देखा

आज मैंने उस बहती नदी को समीप से देखा जो हर रोज पड़ती है मेरे अध्व में…… मैं गुजर जाती हूं अपने जीवन की सूझ बूझ में उलझी उलझी….. मगर शायद आज नियति में था उससे मिलना वो वैसी बिल्कुल… Read More

कविता : ये धान के पकने का सुन्दरतम मौसम है

ये धान के पकने का सुन्दरतम मौसम है इस मौसम में हल्की-फुल्की,  कुछ ठण्डी-ठण्डी हवा-बतास बहेंगी धान के सोने जैसे बालियों में धीरे-धीरे कोटि-कोटि दूधदार चावल आएँगे मिट्टी की सुकोमलता पाकर सूरज की किरणों से नई-नई शक्ति मिलकर धीमी आँच… Read More

कविता : लुटा तो मैं हूँ

कभी अपनो ने लूटा  कभी गैरो ने लूटा। पर में लुटता ही रहा। इस सभ्य समाज में।। किससे लगाएँ हम गुहार, जो मेरा दर्द समझ सके। मेरे ज़ख़्मों पर, मलहम लगा सके। और अपनी इंसानियत, को दिखा सके। और मुझे… Read More

कविता : चलो उस ओर

चलो उस ओर, जहां सूरज निकलता है। पंख फैलाएँ, बिना रुके, बिना ठहरे। चलो उस ओर, जहां ऊर्जा-प्रकाश मिलता है। उम्मीद की किरणों से, हमारा मन प्रभावित  होगा। ऊर्जा रूपी प्रकाश से, हमारा चेतन प्रकाशित होगा। प्रतिपल बढ़ता हमारा कदम,… Read More

कविता : तलाशेंगे

अंधेरा भाग जाएगा हमी रास्ते तलाशेंगे “उजाले के लिए मिट्टी के फिर दीये तलाशेंगे” बुरे लोगों की है बस्ती मगर विश्वास है हमको मिलेंगे लोग अच्छे हम अगर अच्छे तलाशेंगे चलो चलते चलो एक दिन ज़माना साथ आएगा अभी जो… Read More

कविता : जाने कब से

ये लड़ाई इतनी आसान नहीं, बहुत ही कठिन है। है जितनी मुश्किल ये राहें, मंजिल पाना उतना ही जटिल है। मद्धिम-मद्धिम क्षीण हो रही मेरे भीतर की प्रबल इच्छा-शक्ति, हे! नाथ! मेरे भीतर की आत्मशक्ति जगाओ। जो है मुझमें पाने… Read More

व्यंग्य : दिवाली ‘पटाखा’ और ‘फुलझड़ियाँ’

जब से इस देश में सनी लियोनी टाइप्ड विदेशी पटाखा क्या आया है तब से न जाने क्यों घर के पटाखे सीलन भरे ही नज़र आने लगे हैं । अब तो माहौल ही ऐसा है कि अपने घर का बम… Read More

एक दिया चौखट पर

नहीं मनती दिवाली अब घर पर कहाँ से शुरू करें बल्बों की झालर लेकर घर की छत के कोने-कोने में अब कोई नहीं घूमता… … पेचकस, टेस्टर, सेलो टेप लेकर दो तीन बिजली के झटके खाकर अब इलेक्ट्रिशियन कोई नहीं… Read More

रोशन दिवाली कब

दीपों की जगमग आज हुई रोशन, चहुँओर लगे देखो खुशहाली। मांवस रात लगे पूनम सी, काली है पर भरपूर उजियाली। पर जिससे हर घर में है रौनक, उसका घर आज लगता है खाली। सीमा पे बैठ वो लिए बन्दूक, भारत… Read More

व्यंग्य : मन का रावण

हाँ, तुम्हारी मृदुल इच्छा हाय मेरी कटु अनिच्छा  था बहुत माँगा ना तुमने किंतु वह भी दे ना पाया था मैंने तुम्हे रुलाया… ये एक तसल्ली भरा सन्देश है उन लोगों की तरफ से जिन्होंने इस बार मन के रावण… Read More