हम कहीं ना जाइब अब ना केवनो परदेस ना केवनो विदेश ना बाहर कमाये ! अब हम माईये-बाबू के साथे रहब भाईये-बहिनिये संगे खेती में खटब ! जेवन मोर माई -बाबू, भईयवा-बहिनिया खईंहें-पीहें ऊहे खाइब ऊहे पीयब पनडूक आ फुरगुदिया… Read More
कविता : ऐ पूँजीपति कवियों
ऐ पूँजीपति कवियों! क्या तुम्हारी महँगी-महँगी और ब्राण्डेड डायरियों में ज़रा जगह नहीं लिखने को उनका नाम भी जिनकी समूची देह से अंग-अंग से लहू, पसीना, स्वेद-रक्त और आँसू पूरी तरह से, बुरी तरह से दूहे जा चुके हैं और… Read More
कविता : बच्चे
बच्चे बहुत अच्छे होते हैं तन, मन, वचन, आत्मा से बहुत सच्चे होते हैं प्रेम-सद्भाव के वृक्ष-आम के कोमल डालियों की तरह सदा झुके होते हैं कच्चे-पक्के फलों की तरह लदे होते हैं यदि मिलनसार की भाषा सीखना है तो… Read More
कविता : ये धान के पकने का सुन्दरतम मौसम है
ये धान के पकने का सुन्दरतम मौसम है इस मौसम में हल्की-फुल्की, कुछ ठण्डी-ठण्डी हवा-बतास बहेंगी धान के सोने जैसे बालियों में धीरे-धीरे कोटि-कोटि दूधदार चावल आएँगे मिट्टी की सुकोमलता पाकर सूरज की किरणों से नई-नई शक्ति मिलकर धीमी आँच… Read More