बच्चे बहुत अच्छे होते हैं
तन, मन, वचन, आत्मा से बहुत सच्चे होते हैं
प्रेम-सद्भाव के वृक्ष-आम के कोमल डालियों की तरह
सदा झुके होते हैं
कच्चे-पक्के फलों की तरह लदे होते हैं
यदि मिलनसार की भाषा सीखना है
तो कोई बच्चों से सीखे
बच्चों से सीखे किसी बच्चे के रोने से रोना
किसी बच्चे के खिलौने से खेलना
फिर वापस दे देना
किसी के रसोई घर में पईठकर
किसी भी माई के हाथों दूध भात नामू-नामू खा लेना!
धूल की दीवारों की तरह ढ़हना
फिर चट्टानों की तरह न हिलना
किसी भी माँ के आँचल में चिपक जाना
फिर चुप हो जाना चुपचाप
कोई बच्चों से सीखे
किसी आन के बच्चे की आँखों में आँसू
टप-टप बहते हुए को पोंछना
चुप कराना स्नेहिल हाथों से
फिर गले लग जाना बेशक
फिर प्यारा सा चुम्बन दे देना मासूम की तरह
कोई बच्चों से सीखे
बच्चों से सीखे कोई
कि कोई भी आँगन
कोई भी घर
किसी का भी खेत-खलिहान
कोई भी आँगन के फूल
सोन-चिरईयों की तरह उड़न्तू होते हैं
जिनके जाति धर्म नहीं कोई भी
प्रेम और मर्म के सिवा!
किन्तु कहना यह गलत न होगा
कि बच्चे
भूत होते हैं वर्तमान होते हैं भविष्य होते हैं
भूगोल होते हैं अर्थशास्त्र होते हैं इतिहास होते हैं
देश होते हैं दुनिया होते हैं संसार होते हैं
किसान होते हैं मज़दूर होते हैं
बहुत-बहुत कुछ होते हैं
बच्चे वक्त के साथ
बदलते रहते हैं
बच्चे शब्द होते हैं
बम होते हैं बारूद होते हैं
बन्दूक होते हैं
तोप होते हैं तलवार होते हैं
आग होते हैं पानी होते हैं
हवा होते हैं
धरती होते हैं
अनन्त आकाश होते हैं
बच्चे गीत होते हैं संगीत होते हैं
ज्ञान होते हैं विज्ञान होते हैं
सभ्यता होते हैं
संस्कृति होते हैं नदी होते हैं सागर होते हैं
सागर के सुनामी होते हैं
सिन्धु के ज्वार होते हैं
खेत होते हैं खदान होते हैं कल-कारखाने होते हैं
कोटि-कोटि श्रमिक हथियार होते हैं
बच्चे चान्द होते हैं असंख्य सितारे होते हैं
सूरज होते हैं सम्पूर्ण प्रकृति के अप्रतिम कलाकृति होते हैं
जिन्हें हत्या नहीं कर सकता कोई
जिनकी प्रतिभा को कत्ल नहीं कर सकता कोई भी
अगर करने की कोशिश करता भी है
तो सबसे पहले वह खुद खत्म होगा
उसकी तमाम दुनिया खत्म होगी
उसके तमाम देश खत्म होंगे
उसके तमाम लगाए हुए पेड़ खत्म होंगे
उसके तमाम गाँव जिला राज्य खत्म होंगे
उसकी तमाम नदियाँ खत्म होंगी
उसकी तमाम सुन्दरताएँ खत्म होंगी
क्योंकि
बच्चे वक्त के साथ बदलते रहते हैं….
बच्चे बम होते हैं बारुद होते हैं बन्दूक होते हैं …
भूख में बहुत बहुत कुछ होते हैं!
जिनके होने से कोई भी रोक नहीं सकता
न ईश्वर
न जाति
न धर्म
न सत्ता
न पोथा-पोथी
कुछ भी नहीं….,नहीं नहीं
कुछ भी नहीं!