स्थिरता हो मन में जिसके वो मनमीत चुनो तुम, ये चकाचौंध बहुत भटकाती है सादगी भा जाये जिसकी वो मनमीत चुनो तुम, ये दुनिया झूठे ख्वाब बहुत दिखाती है हर भावों को न तौलौ तुम समाज के दकियानूसी तराजू में,… Read More
कहानी : बचपन की पतोहू
बचपन से उनको मुझे अपनी बहु बनाने का बहुत शौक था इसलिए वो मुझे पतोहू कहकर बुलाती थी, जबसे मैंने होश संभाला तबसे मुझे उसी नाम से उन्हें पुकारते हुए सुना है। मैं बहुत छोटी थी, मेरे डैडी और उनके… Read More
कविता : उठो मन
उठो मन!अभी तुम्हें बहुत चलना है, कदम रखकर आगे अभी और बढ़ना है। कि अभी मंजिल न आयी है तुम्हारी भ्रम में रहकर न रुकना है। उठो मन! अभी तो तुम्हें फिर चलना है, विपरीत बहती धाराओं में तो अभी… Read More
कविता : पूस की बरसात
देखे थे मैंने सावन-भादों झूमते हर बार, पहली बार पूस की रातों को बरसते देखा था। भादों की चाँदनी में पेड़ तो जगमगाए थे पूस की रातों में जुगनुगों को झुरमुट से झाँकते पहली बार देखा था। पूस की उन… Read More
कविता : गंवारा न था
ये मेरे भीतर छिपी व्याकुलता ही है, जिसने मेरे स्वभाव में अधीरता को जन्म दिया है। माना मेरी बुद्धि संकीर्ण थी और बुद्धजीवियों के व्यापक परंतु, इस संकीर्ण ने ही ढांढस बंधा स्वयं को संभाला, विपरीत व्यथाओं मेँ हर-पल। प्रतिकार,… Read More
कविता : समझ नहीं आता हम भारत को कैसे स्वच्छ करें!
समझ नहीं आता हम भारत को कैसे स्वच्छ करें? क्या वही थी वो गंगा, अविरल सी बहती, जहाँ वायु में शुद्धता का समावेश था। कितना सुंदर था हमारा भारत कितना स्वच्छ था हमारा भारत पूरे विश्व में शुद्धता का परिमाण… Read More
कविता : सोच बेटी सोच
सोच बेटी सोच…! क्यूँ है इस दुनिया में आयी तू क्यूँ लड़नी पड़ेगी इतनी लड़ायी? सोच बेटी सोच … इस बात में है बहुत गहरायी। क्यूँ इनके अस्तित्व, इनके वजूद पर, हर समय मुसीबतें आयी? क्यूँ इनके आगे बढ़ने पर,… Read More
कविता : उड़ने के लिए
ला दो मुझे भी वो पंख उड़ने के लिए, पंख पसारकर हर ऊँचाई। पंखों के बिन उड़ना कैसा? उम्मीद के बिन ठहरना कैसा? उम्मीद की कली है खिलने दो न मुझमें, पंख पसारकर उड़ने दो न मुझे! आएगा एक दिन… Read More
कविता : चलती हूँ कुछ दूर
चलती हूँ कुछ दूर, पाँव रुक जाते है। मंजिल पर पहुँचने से पहले, हालात बिगड़ जाते है। बहुतों को देखा है, लिखते अपनी कहानी। हम जब लिखते है, हमारे हाथ रुक जाते है। बैठें थे जब लिखनें वो ऊपरवाले, क़िस्मत… Read More
कविता : टिक-टिक-टिक
घड़ी की सुई, टिक-टिक-टिक। हृदय की गति, धक-धक। वक़्त की चाल, है रफ़्तार। पानी की बूंदें, टप-टप-टप। साँसों का चलना, अंदर-बाहर, ऊपर-नीचे। कुछ कारवां आगे, कुछ लम्हें पीछे। पलकें झपके, ऊपर-नीचे। सब चंचल गतिमान, वजनी द्रव्यमान। हर जगह शोर, स्पष्ट… Read More