jis din

कविता : जिस दिन

जिस दिन तुम्हारी दृष्टि में पथ-गंतव्य अभिन्न प्रतीत होने लगे समझ लेना, तुमने उपलब्धि की उस प्रमाणित रेखा को मिटा दिया है। जिस दिन प्रसन्नता और मुस्कुराहट में फर्क करना कठिन हो जाए समझ लेना तुमने अपने मन को स्वयं… Read More

kya hai jaruri

कविता : क्या है जरूरी

जो बीत गया, क्या वो वापस नहीं आ सकता? जो बदल गया, क्या वो दुबारा नहीं बदल सकता? जो छूट गया, क्या वो दुबारा नहीं मिल सकता? जो रुक गया, क्या वो दुबारा नहीं शुरु हो सकता? हर समय बदलना,… Read More

mushkil hai

कविता : मुश्किल है

मुझे तोड़ना बहुत मुश्किल है! छोड़ दो चाहे मुझे मुश्किल हालातों में चाहे तोड़ दो आत्मविश्वास मेरा हर बार मुझे ख़ुद से संभलना आता है! गिरा लो चाहें मनोबल जितना गिरकर मुझे ख़ुद से उठना आता है दे लो चाहें… Read More

tumhari ye aankhen

कविता : तुम्हारी ये आँखें

तू हँस के देख या देख के हँस न जाने क्यूँ तेरी आँखें हर वक़्त कुछ कहती जरूर है। तू खुश रहे या बहुत खुश हर वक़्त तेरी आँखें कुछ छुपाती जरूर है। तू उदास भी रहे तेरी आँखें गम… Read More

shadi

कविता : वो ही मनमीत चुनना तुम

स्थिरता हो मन में जिसके वो मनमीत चुनो तुम, ये चकाचौंध बहुत भटकाती है सादगी भा जाये जिसकी वो मनमीत चुनो तुम, ये दुनिया झूठे ख्वाब बहुत दिखाती है हर भावों को न तौलौ तुम समाज के दकियानूसी तराजू में,… Read More

yadee

कहानी : बचपन की पतोहू

बचपन से उनको मुझे अपनी बहु बनाने का बहुत शौक था इसलिए वो मुझे पतोहू कहकर बुलाती थी, जबसे मैंने होश संभाला तबसे मुझे उसी नाम से उन्हें पुकारते हुए सुना है। मैं बहुत छोटी थी, मेरे डैडी और उनके… Read More

josh

कविता : उठो मन

उठो मन!अभी तुम्हें बहुत चलना है, कदम रखकर आगे अभी और बढ़ना है। कि अभी मंजिल न आयी है तुम्हारी भ्रम में रहकर न रुकना है। उठो मन! अभी तो तुम्हें फिर चलना है, विपरीत बहती धाराओं में तो अभी… Read More

pahli bar

कविता : पूस की बरसात

देखे थे मैंने सावन-भादों झूमते हर बार, पहली बार पूस की रातों को बरसते देखा था। भादों की चाँदनी में पेड़ तो जगमगाए थे पूस की रातों में जुगनुगों को झुरमुट से झाँकते पहली बार देखा था। पूस की उन… Read More

AmritaPoem

कविता : गंवारा न था

ये मेरे भीतर छिपी व्याकुलता ही है, जिसने मेरे स्वभाव में अधीरता को जन्म दिया है। माना मेरी बुद्धि संकीर्ण थी और बुद्धजीवियों के व्यापक परंतु, इस संकीर्ण ने ही ढांढस बंधा स्वयं को संभाला, विपरीत व्यथाओं मेँ हर-पल। प्रतिकार,… Read More

कविता : समझ नहीं आता हम भारत को कैसे स्वच्छ करें!

समझ नहीं आता हम भारत को कैसे स्वच्छ करें? क्या वही थी वो गंगा, अविरल सी बहती, जहाँ वायु में शुद्धता का समावेश था। कितना सुंदर था हमारा भारत कितना स्वच्छ था हमारा भारत पूरे विश्व में शुद्धता का  परिमाण… Read More