बचपन से उनको मुझे अपनी बहु बनाने का बहुत शौक था इसलिए वो मुझे पतोहू कहकर बुलाती थी, जबसे मैंने होश संभाला तबसे मुझे उसी नाम से उन्हें पुकारते हुए सुना है। मैं बहुत छोटी थी, मेरे डैडी और उनके दोस्त रेलवे कर्मचारी थे और आंटी इन्हीं अंकल की धर्मपत्नी थी, रेलवे कर्मचारी होने के नाते उन्हें सरकारी क्वार्टर मिले थे। हमारे क्वार्टर सटे होने के कारण हमारी मम्मियों में मेल-मिलाप हो गया और ये शायद अनंत चलना था। हम पाँच और उधर सात भाई-बहनें, जिनको साथ खेलने में बहुत मजा आता था। हमारे क्वार्टर के बीच एक दीवार हुआ करती थी जिसे फाँदकर वे इधर और हम उधर चले जाया करते थे, मुझे छोड़कर क्यूंकि खेलों में उस समय मेरा दूध-भात हुआ करता था। जीवन में बहुत सादगी थी पर खुशनुमा थी। लुका-छुपी खेलते समय सभी मुझे स्कूटर की डिक्की में बैठा दिया करते थे और मैं उसी में खुश हो जाया करती थी। वहीं सामने एक पेड़ हुआ करता था जिसके लाल फूल मुझे बहुत पसंद थे, मैं अक्सर उनको चुनने जाया करती थी, जिंदगी जैसे रंगों से भरी हुयी थी। डैडी अक्सर अपने काम के सिलसिले में बनारस जाया करते थे, वहाँ से मेरे लिए पायल लाया करते थे। कोई पूछा करता कितने का है तो डैडी बोलते 500 में दो शोना (शून्य) कम और मैं फुले न समाती सबसे कहती फिरती 500 का पायल 500 का पायल और पहनकर छम-छम करती फिरती। इसी छम-छम ने आंटी से मेरा नाम छमा रखवा दिया था और तबसे आंटी के घर के सारे लोग मुझे छमा बुलाने लगे। बचपन में मुझे बहुत बुरा लगता था लेकिन बाद में आदत पड़ गयी थी।
आंटी जब भी मुझसे मिलती एक ही सवाल पूछती थी मेरे किशन से शादी करोगी? किशन उनका बेटा था जो मुझसे दो-तीन वर्ष बड़ा था और मैं इठलाकर कहती नहीं उसका नाक बहता है मैं नहीं करूँगी उससे शादी! और सभी हँस पड़ते।
समय बीतता गया हमारे क्वार्टर बदलकर निजी मकान बन गए और हम दूर हो गए लेकिन वो कहावत है न कि ” दिल के करीब रहने वालों के लिए मिलों के फ़ासले मायने नहीं रखते।”
अलग होने के बाद धीरे-धीरे हम सभी अपने जीवन में व्यस्त हो गए पर जिन दो को सबसे ज्यादा जिसकी याद आती थी वो थी मेरी मम्मी और आंटी जी क्योंकि जीवन के उतार-चढ़ाव में दोनों ने एक-दूसरे का बहुत साथ दिया था। जीवन के इतने सुख-दुःख साथ में बाँटे थे कि वे एक-दूसरे की प्रिय सखी बन गयी थी। घर बनने के बाद भी दोनों सखी एक-दूसरे से मिलती रहती थी और कभी कभी मुझे भी ले जाया करती थी। मैं जब भी जाती वो मुझसे एक ही सवाल पूछती थी “शादी करोगी मेरे किशन से? अब तो उसका नाक भी नहीं बहता है।”
मैं कहती “नहीं, मुझे नहीं करनी, क्या पता शादी के बाद नाक बहने लगे ।” फिर सभी हँस पड़ते!
समय बीतते गए उनके बच्चों की शादी होती गयी अब हम सालों में एकाध बार मिलते रहें लेकिन उनका सवाल पूछना और मुझे पतोहू बोलना ये परिवर्तन कभी नहीं आया और मेरे जवाब में भी।
उनके चेहरे पर एक अलग ही मुस्कुराहट हुआ करती थी जैसे जीवन के सारी समस्याओं का हल उनके पास हो। वे किसी बात को लेकर चिंतित भी होती तो कोई उनके पेशानी पर पड़े लकीरों को न देख पाता था क्योंकि वे उसे अपनी मुस्कुराहट में छुपा दिया करती थी। जीवन के सारे संघर्ष जैसे उसी एक मुस्कुराहट में काट दिये हो। शायद यही वो मुस्कुराहट थी जो मेरी मम्मी को मुश्किल वक़्त में हौसला दिया करती थी।
समय और बिता उनके सारे बच्चों की शादी हो गयीं अब बस किशन रह गया था। मेरी भी दो बड़ी बहनों की शादी हो चुकी थी।हमारे फादर्स सेवानिवृत हो चुके थे।
अब साल 2020 का है जब कोरोना नामक महामारी दुनिया भर में फैल चुकी थी, मेरे भाई की शादी कोरोना काल में बड़ी सादगी से हुयी, जहाँ आंटी जी ने पहली बार मुझे साडी में देखा था और फिर वही बात पर इस बार लाइन थोड़ी अलग थी। “आ गयी मेरी पतोहू! ” फिर वही इस्माइल जैसे एक ताकत हो सारे संघर्ष से लड़ने की उसमें!
मैंने कभी उनके चेहरे को उस इस्माइल के बगैर नहीं, मैंने नहीं शायद किसी ने नहीं देखा हो। वो गहनें बहुत कम पहनती थी पर उस एक गहनें (मुस्कुराहट) के कारण वो सबसे अलग दिखती थी, शायद ये मेरी उनके प्रति प्रशंसा भी क्योंकि मेरी मम्मी के बाद जिसका उनसे एक गहरा जुड़ाव था वो मैं ही थी।
एक और वर्ष बीत गये, एक दिन अंकल जी घर आये, उनके हाथ में शादी का कार्ड था किशन का!
मैं हँसते हुए बोली अरे! ऐसे कैसे मेरे दुल्हे की शादी मुझे बिना बताये करेंगी! मैं तो लडूंगी!
किशन की भी शादी लॉकडाउन में हुयी। शायद कुछ खास ही रिश्ता था हम दो परिवारों के बीच, तभी जहाँ शादियों में गिने-चुने, खासम-खास लोगों का आमंत्रण हो रहा था वहीं यहाँ की शादी में उनका और उनके यहाँ हमारा आमंत्रण था।
शादी का भी दिन आ गया, मैं लड़ने को तैयार थी पर एक माँ, एक औरत जो समाज के सभी रीति-रिवाज़ों को मानती थी, अपने बेटे की बारात में कैसे आ सकती थी, मैं ये बात भूल गयी थी।
सभी सामान्य थे पर न जाने क्यों मैं बेचैन थी और अंततः बात पता चली कि वह कुछ दिनों से बीमार चल रही थी।
शादी हो गयी, जैसे वो अपनी सारी जिम्मेदारियां निभा चुकी हो।
दस दिनों बाद हमें समाचार मिला
वो संघर्ष वाली मुस्कुराहट सदा के लिए जा चुकी थी। हर जगह सन्नाटा था कुछ दिनों बाद भोजन कराकर सभी मौन हो गये जैसे इस बारे बात ही नहीं करना चाहते हो।
आज दो वर्ष बीत गए आज भी उस बात को लेकर सन्नाटा है
पर मेरा मन आज भी और उस समय भी इसी उहापोहों से भरा था, बार-बार एक ही प्रश्न मन में… कि “गर वो हमारे बीच रहती तो क्या मैं उनसे लड़ने जाती?”
बहुत सुंदर रचना है ऐसा लगा ये तुम्हारी ही कहानी हो
बहुत बहुत धन्यवाद डियर, वैसे ये मेरी ही कहानी है।
बहुत ही मार्मिक कहानी रचा है आपने दीदी। मेरे हृदय को छू गई।✨
धन्यवाद जया
good work punjaban, keep it up…btw who is kisan?
बहुत ही खूबसुरत कहानी है
Thank you धन्यवाद
सभी को बहुत बहुत धन्यवाद
Good start to a career in writing. Waiting for many more to come.
Thank you so much Maam
यादों का गुलदस्ता जो बड़ी खुबसूरती से पिरोया गया है, हर शब्द में जुड़ाव की अनुभूति महसूस हुई।
आपके धैर्य के परिचय का आभास हुआ।
सच कहूं तो मुझे पुरी कहानी ने भाव विभोर कर दिया।
आपका सवाल का जवाब हैं, कि आप अपना सवाल उनके सामने रखती उससे पहले आपको जवाब मिल जाता।
और आप चाह के भी पुरे हक से लड़ाई नहीं कर पाती।
Thank you so much maam for reply