ला दो मुझे भी वो पंख उड़ने के लिए,
पंख पसारकर हर ऊँचाई।
पंखों के बिन उड़ना कैसा?
उम्मीद के बिन ठहरना कैसा?
उम्मीद की कली है खिलने दो न मुझमें,
पंख पसारकर उड़ने दो न मुझे!
आएगा एक दिन ऐसा
उम्मीद की कली मुरझा जाएगी,
बिना खिले, बिना उड़े, वो दूर……
……………………कहीं खो जाएगी।