देखे थे मैंने सावन-भादों झूमते हर बार,
पहली बार पूस की रातों को
बरसते देखा था।
भादों की चाँदनी में पेड़ तो जगमगाए थे
पूस की रातों में जुगनुगों को
झुरमुट से झाँकते पहली बार देखा था।
पूस की उन ठिठुरती रातों को
पहली बार इठलाते देखा था।
कोहरे की पिछौरी ओढ़े रहते
अपने खेतों की मिट्टी को,
सोंधी ख़ुशबू लिए, चेतना की
अवस्था में पहली बार देखा था।
लहलहाते द्रुम,
चेतन मृदा,
अंगड़ायी लेती सर्द रातें,
हाँ,
पहली बार मैंने पूस में,
प्रकृति को इतना प्रमोदित देखा था।
पहली बार मैंने सर्द दिनों में
बरसात को देखा था।
पहली बार मैंने पूस की
रातों को बरसते देखा था।,