jhuti

हर जगह कई लोग
चुपके – चुपके चलते हैं
अपना मुँह छिपाते वो
धीरे – धीरे चलते हैं
वर्ण-जाति-वर्ग की निशा में
एक दूसरे को कुचलाते
भेद – विभेद, अहं की आड़ में
असमर्थ बन बैठे हैं मनुष्य
एक दूसरे को जानने में,
समता-ममता-बंधुता-भाईचारा
अक्षरों की दुनिया में
एक सुंदर सपना है
सुख-भोग की चिंता में
एक दूसरे पर छुरी मारते
जिंदगी एक झूठ है।

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