कठिन होता है समझना इस दुनिया को, हर जीव को, कभी असली से ज्यादा नकली बेहद अपनी दर्जा दिखाती है कपोल – कल्पित कई बातें मीठी – मीठी लगती हैं जग में अनुभव के बल पर होता है असलीयत का… Read More

कठिन होता है समझना इस दुनिया को, हर जीव को, कभी असली से ज्यादा नकली बेहद अपनी दर्जा दिखाती है कपोल – कल्पित कई बातें मीठी – मीठी लगती हैं जग में अनुभव के बल पर होता है असलीयत का… Read More
खाना पहले उनको दो जो सड़कों में, गलियों में भीख माँगते नज़र आते हैं असहाय अवस्था को पारकर आगे बढ़ने में असफल हैं पराजित हैं वे अपने जीवन में आघात हुई है उनके मन पर देह की सुधा भी खो… Read More
पसंद नहीं है उन्हें, सहनते नहीं हैं वे दलितों का अच्छे कपड़े पहनना और चेस्मा लगाना, उनके जैसे अस्मिता का जीवन बिताना, गुलाम समझते हैं दलितों को हीन, नीच, अधम समझते हैं वे पुरखों से प्राप्त मूर्ख सांप्रदाय गौरव की… Read More
आज की दुनिया में बहुत कम लोग अपनी आँखों से देख पाते हैं कई लोग, चेस्मा के बगैर बाहर कदम भी नहीं ले पाते हैं, कुछ लोग भविष्य को देखने में सक्षम होते हैं, दूसरे के अंतरंग में जाना, यथार्थ… Read More
फैलें दुनिया में निर्मल संघ सत्य की खोज़ें जारी रहें अंगुली मालों को बदलने की शक्ति हर बुद्ध के अधीन में आ जावें निकलें हर दिल से सुख विचार शांति दें संसार को सत्संग विहार, मंटप हों जहाँ-तहाँ मिले लोग… Read More
तलवार से अगर जीत मिलता तो सबके हाथों में तलवार होते हैं, मनुष्य नहीं, हर जगह हिंस जंतु रहेंगे। छीनना, झपटना, स्वार्थ का रूप है हिंसा कभी भी स्वीकार्य नहीं है ‘विजय’ तलवार व बंदूक से कभी भी नहीं हो… Read More
चलते हैं लोग दुनिया में कभी तेज, कभी चुस्त कभी सीमाओं के अंदर, कभी सीमाओं को पारकर जो अंधेरे में होते हैं, कोई सहारा नहीं जिसका वे चलते हैं धीरे – धीरे, सब लोग चलते हैं रोशनी में लेकिन बहुत… Read More
क्या है मेरे अंदर छिपाने का बाल्य काल से ही मैं नंगा था पुस्तकों में मस्तक लगाके ढ़ूँढ़ता था- मैं अपने आपको, आंतरिक दुनिया में, कौन हूँ मैं आखिर, विचार कई थे मेरे चक्कर काटने लगे, पागल था मैं… पुस्तकालय… Read More
क्या है…? मेरे अंदर छिपाने का बाल्य काल से ही मैं नंगा था, पुस्तकों में मस्तक लगाके ढ़ूँढ़ता था, मैं अपने आपको, आंतरिक दुनिया में, कौन हूँ मैं आखिर…? विचार कई थे मेरे, चक्कर काटने लगे, पागल था मैं, पुस्तकालय… Read More
कई लोग ऐसे हैं बढ़-बढ़कर दूसरों से बोलते हैं, लेकिन बहुत कम लोग अपने आप से बोलते हैं अपने में दूसरों को देखना दूसरों में अपने को देखना सबसे बड़ी साधना है मनुष्य का, यथार्थ में, दुनिया में हम देखते… Read More