जलता हूँ मैं अपने आपमें अक्षर बन जाता हूँ नित्य प्रज्ज्वलित ज्वाला मेरे बनते हैं अक्षर प्रखर असमानता, अत्याचारों के विरूद्ध आवाज़ बनकर आते हैं ये मेरे प्रखंड प्राणाक्षर पंचशील का हूँ मैं साधना में अल्प की दृष्टि से देखो… Read More
कविता : बोलता हूँ मैं
मैं समाज से बोलता हूँ दुनिया से बोलता हूँ मनुष्य से बोलता हूँ मेरे पास वह शक्ति नहीं उन भेड़ियों से बोलने का कुटिल तंत्रों के साथ लड़ने का होने दो मुझ पर इनके नादान परिहास रचने दो मंत्र –… Read More
कविता : वह जानता ही नहीं
बकरे को उसने बड़ी दुलार से पाला – पोसा किया विश्वास की कोमल जगह पर उसे बलि चढ़ा दी निर्ममता से, मालिक का यह दुलार नाटक वह नादान जान नहीं पाया उसके हर बात को वह मिमियाता रहा, सिर हिलाता… Read More
कविता : मानव जग में
कभी – कभार हम अपनों से, अपना समझनेवालों से भी पराये हो जाते हैं दूर से दूर से हम देखे जाते हैं यह नियति है जीवन की एक दूसरे से मिलना, सारे बंधनों से अलग हो जाना, मानवीय भावनाओं को… Read More
कविता : क्या दोष है मेरा
मेरे विचारों में शब्दों में कौन सा विष है जो हानि करता है दूसरों की मैं न्याय की बात करता हूं दलित की बात लिखता हूं अग्रसर हूँ लोक कल्याण की दिशा में समर्पित लम्बी यात्रा निरंतर श्रम हर दिन… Read More
कविता : हम सब चलेंगे
मर्म नहीं, खुले में कर्म की बात करेंगे विश्व चेतना के साथ अपनी शक्ति को जोड़कर हम भी कुछ रचेंगे पीड़ा, दुःख, दर्द की असमानता के पोल खोलेंगे इन गाथाओं के मूल में स्वार्थ की क्रीड़ा को हम जग जाहिर… Read More
कविता : जिंदगी
अलग नहीं हो तुम कभी मुझे से न मैं हूँ कभी अलग तुम से पारस्परिक सहयोग से चलती है जिंदगी अंतिम सांस तक अकेला कोई जी नहीं सकता सह अस्तित्व है प्रबल शक्ति। भेद – विभेद की रचना में अपने… Read More
कविता : आभार
आभार प्रकट करते हैं हम उस महामानव को जिसने हमारे प्रज्ञा चक्षु खोले कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन का वह पुत्र सर्वसंग परित्यागी गौतम नाम धारी महाकारूणिक था, जिसने जीने का सही ढंग मानव समाज को सिखाया । हम चलेंगे उस… Read More
कविता : सीख
हम देखते हैं, सूखे हुए पेड़ों को जर्जरित पौधों को कठिन काल की हर दौर में एक पीड़ा है उनकी जिंदगी ये चीखते नहीं, चिल्लाते नहीं है व्यथा का मुंह कभी खोलते ही नहीं कुछ मांगते नहीं गिड़गिड़ाते दिखते नहीं… Read More
कविता : माँ नहीं है – मातृ दिवस विशेष
अस्पताल में पलंग पर लेटा था मैं मेरी हालत को देख लहू सुख गया था मां का रोने में भी असमर्थ बैठी थी आँसू भी सूख गये थे उसके शून्यता में डूबी एकटक देखती रह गयी थी नहीं निकल पाया… Read More