जलता हूँ मैं अपने आपमें
अक्षर बन जाता हूँ नित्य
प्रज्ज्वलित ज्वाला मेरे
बनते हैं अक्षर प्रखर
असमानता, अत्याचारों के विरूद्ध
आवाज़ बनकर आते हैं
ये मेरे प्रखंड प्राणाक्षर
पंचशील का हूँ मैं साधना में
अल्प की दृष्टि से देखो मत
सारा जग मेरा है
प्रपंच मत करो मेरे साथ
देखो तुम भी मेरे अंदर हो
हर इंसान का प्रेम मेरा है
विकार मन अब मेरे साथ
चाल नहीं चला सकेगा
दुश्मनो! षडयंत्रकारी रचना छोड़ो
भाईचारा कितना सुंदर है देखो
अक्षरों की मशाल हूँ मैं
पथ दिखानेवाली हैं मेरी
पुरखों की ये धमनियाँ
सबका सुकून मैं चाहता हूँ
इस दुनिया में
दिया बनकर चलता हूँ
वैश्विक चेतना के साथ
चलने दो मुझे
अवरूद्ध मत बनो, मूढ़ाचारी
आगे बढ़ने दो मुझे ।