रास्ता सीधा नहीं होता धरती के अनुरूप वह,करवट लेता रहता है कभी बायें की ओर,कभी दायें की ओर सीधा चलनेवाले को,टक्कर लेना पड़ता है कहीं पत्थरों से,कहीं कांटों से सरल नहीं होता है उसे उतार-चढ़ावों को पारकर अपने रास्ते से… Read More
कविता : एक दृष्टि
जंतुओं से इतना डर नहीं होता इस दुनिया में जितना उन मनुष्यों से और अपनों से होता है, जो पीछे से, चुपके से मीठी – मीठी बातों से, चोट दिल को आसानी से देते हैं, कठिन है अपनों से लड़ना… Read More
कविता : विरोधी स्वर हूँ मैं
सुख भोग से मदमस्त सोता नहीं हूँ मैं, सोता हूँ कल – कल की धार हूँ कूड़ा – कचरा नहीं जिंदगी का कचर – पचर हूँ वैज्ञानिक पथ में कदम हूँ मैं यात्री हूँ अंतरंग में रग – रेशों में… Read More
कविता : सूरज अस्त नहीं होगा
होते हैं रास्ते विचारों में अनेक टेढ़े – मेढ़े, सीधे – साधे मिट्ठी, कंकड़ – पत्थर के हैं कहीं – कहीं काँटे भी होते। चुनना होगा हमें ही बुद्धि से उचित पथ कौनसा है हमारा निकालना पड़ता है रास्ते से… Read More
कविता : भाषा
अलग है मेरी भाषा तुम्हारी भाषा से, अलग है दुनिया में मनुष्यों की भाषा कई रूप हैं भाषा के, पुस्तक की भाषा बोलचाल की भाषा, श्रम की भाषा मूक-गूँगे की भाषा, शरीर की भाषा माँ की भाषा, परिवार की भाषा… Read More
कविता : झूठ
हर जगह कई लोग चुपके – चुपके चलते हैं अपना मुँह छिपाते वो धीरे – धीरे चलते हैं वर्ण-जाति-वर्ग की निशा में एक दूसरे को कुचलाते भेद – विभेद, अहं की आड़ में असमर्थ बन बैठे हैं मनुष्य एक दूसरे… Read More
संस्मरण : यात्री हूँ मैं
जीते-जागते निकल जाता हूँ द्वन्द्व के दुर्गम मार्ग को, युद्ध होता है विचारों के विशाल अवनि पर जीत है, हार है स्वीकार है, तिरस्कार है निंदा-स्तुति है, मान-अपमान है मानव के इस जग में, अंतरंग के संगम क्षेत्र में समेटकर… Read More
कविता : महामानव बनो
विश्व चेतना के बीज हे मनुष्य ! अंकुरित होने दो तुम्हारे निर्मल चित्त में लहलहाती फ़सलों की सरसराने दो, स्वेच्छा वायु से बचाते रहो अपनी रौनक को मूढ़ विचारों से, बौद्धिक चेतना का हरियाली तुम बनो अनवरत साधना में सत्य… Read More
कविता : छोड़ो भेद – व्यवधान
जी नहीं सकता मैं अकेला जी नहीं सकते तुम अकेले जी नहीं सकता कोई अकेले इस मानव जग में चलना है .. चलना है… मिलजुलते – प्यार करते एक दूसरे से और मानते एक दूसरे को सहयोग अदा करते परस्पर… Read More
कविता : कोई शिकायत नहीं
हंसनेवालों को हंसने दो यह नयी बात तो नहीं अपने रास्ते पर चलनेवालों को मैं फिसलता हूँ, गिरता हूँ लड़खड़ाता हूँ तो क्या विचारों की दुनिया में एक स्वतंत्रता है, अंतर्वस्तु है मेरी सामाजिक चिंतन में समर्पित हूँ अपना कुछ… Read More