poem ji nahi sakta me akele

जी नहीं सकता मैं
अकेला
जी नहीं सकते तुम
अकेले
जी नहीं सकता कोई
अकेले
इस मानव जग में
चलना है .. चलना है…

मिलजुलते – प्यार करते
एक दूसरे से और
मानते एक दूसरे को
सहयोग अदा करते परस्पर
जिंदगी को बनाना है
सुखमय – आनंदमय
शील बनो.. सच बनो..

मन, वचन, कर्म से एक रहो
शोधक बनो, अपने आप में
अंतर्यात्री बनो, दिव्य बनो
समता, ममता, भाईचारे की
भव्यधारा में तरते जाओ
लोक कल्याण की ओर
अंतिम साँस तक
अपना कुछ बनते जाओ।

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *