kalam

होते हैं रास्ते विचारों में अनेक
टेढ़े – मेढ़े, सीधे – साधे
मिट्ठी, कंकड़ – पत्थर के हैं
कहीं – कहीं काँटे भी होते।
चुनना होगा हमें ही बुद्धि से
उचित पथ कौनसा है हमारा
निकालना पड़ता है रास्ते से
पीड़ा – बाधा के उन काँटों को
चुभनेवाली उस मूढ़ता को
हटाना पड़ता है पत्थर जो
प्रगति के अवरूद्ध बने हुए हैं
आओ, संगठित हो जाओ,
उत्साह – उमंग जो भरते रहो
अस्मिता की हमारी दुनिया में
अपना कुछ चेहरा दिखाओ
सच्चे श्रम का अधिकारी हम
यह तथ्य मत भूल जाओ
सूरज कभी अस्त नहीं होगा
अंधकार को चीरता रहेगा
कभी यहाँ, कभी वहाँ
आग वह फैलाता जाएगा
हर जगह, हर कला में
अपनी दर्जा दिखाओ
कलम का स्याही बनकर
जीवन का सार रचाओ ।

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