“काठ का घोड़ा,लगाम रेत की ,नदी पार तैयारी
घटिया कला ,अछूती भाषा,बनते काव्य शिकारी ”
कविवर अष्टभुजा शुक्ल की ये कविता ,आजकल घोषित हो रहे काव्य पुरस्कारों के बाबत बिल्कुल सटीक है ।लोग पुरस्कार पाते हैं तब नहीं कहते है मेरी रचना पुरस्कार तो क्या पठनीयता के भी लायक नहीं है ।लेकिन पुरस्कार पर कोई उंगली उठा दे तो फुफकारने लगते हैं कि “मैं लिखना छोड़ दूंगा “।
वैसे हिंदी में कोई लिखना नहीं छोड़ता ,जब तक जीवन की सांसें उसका साथ छोड़ न दें।
राजस्थान में एक पवित्र पूजा का स्थान है बालाजी ,जो लोग बालाजी के दर्शन करने जाते हैं ,वहाँ से लौटने के बाद आम तौर पर लोग शुद्धता पर ज्यादा फोकस करते हैं और अपनी किसी अशुद्ध आ
आदतों का त्याग कर देते हैं ,ये तो श्रद्धालुओं की श्रद्धा है कि वो पवित्र स्थान से प्रेरणा लेकर चखुद बुराइयों को छोड़ देते हैं ।लेकिन हमारे देश मे कुछ लोग छोड़ने को लेकर तरह तरह के एलान करते हैं।लेकिन सबसे हैरतअंगेज़ बयान आया है एक चुनावी रणनीतिकार का जिस पर लोग जम कर मजे ले रहे हैं ।उन्होंने फरमाया है कि एक खास दिशा के पश्चिमी बंगाल के आगामी चुनाव में यदि उकोई खास पार्टी दहाई संख्या की सीमा को छू गयी तो वे ट्विटर छोड़ देंगे ।ताजुब्ब की बात ये है कि उन्हें
ये दावा उन्होंने उस पार्टी के लिये नहीं किया है जिसे जिताने हेतु उन्होंने कांट्रैक्ट किया है ,आम तौर पर एक कुशल रणनीतिकार ये दावा करता है कि अगर मैं ये चुनाव नहीं जीता पाया तो मैं अपना पद और अपनी फीस छोड़ दूंगा।अपनी जीत की चिंता न करके बल्कि दुदुसरे की हार के प्रति आश्वस्त होना ही एक किस्म का शिगूफा है ,ये उस रणनीति का हिस्सा है जिसमें व्यक्ति ये अहद लेता है कि “भले ही मेरी भी एक आंख फूट जाए,लेकिन पड़ोसी की दोनों आंखे जरूर फूटनी चाहिए “। वैसे ये रणनीतिकार छोड़ने में माहिर हैं अभी एक बड़ी पार्टी में एक बहुत बड़ा पद छोड़ आये हैं ,वो भी अपने किसी निजी कारण से नहीं बल्कि इसलिये कि उनकी पार्टी के प्रमुख लोगों ने एक मुद्दे पर अपनी सहयोगी पार्टियों का समर्थन किया था सो महोदय पिनककर पार्टी छोड़ बैठे और बंगाल चले गए।अब वहां पर ताल ठोंक रहे हैं कि उस दल को जीतने नहीं दूंगा जिनकी वजह से उनको पार्टी से विदा होना पड़ा।
किसी फिल्म में एक बड़ा सुंदर डायलॉग था जिसमें राजकुमार साहब ,एक युवक से पूछते हैं कि सबसे बड़ा दुश्मन कौन होता है ,तो युवा नायक जवाब देता है “कोई पुराना दोस्त”।यही हाल इन रणनीतिकार महोदय का है ये उसी पार्टी की लंका लगाने में लगे हैं जिस पार्टी ने इनको पहला रोजगार दिया और पार्टी की जीत के बाद इनका भी खूब भाव बढ़ा।
मगर इतना भी भाव नहीं बढ़ सका कि पार्टी में उनका कोई कद या रुतबा बढ़ सके।नतीजतन तुनकककर उस पार्टी की खटिया खड़ी करने विरोधी पार्टी में चले गए। वहाँ जाकर उन्होंने वोट पाने के लिये खटिया अभियान भी चलाया ,लेकिन न तो वोट मिला और हुल्लड़बाजी में लोग खटिया भी उठा ले गए।
वैसे छोड़ने की धमकी इस देश मे नई नहीं है।बहुत बरसों से लोग बाग चुनावों में ताल ठोंकते रहे कि मोदी जी पीएम निर्वाचित होंगे तो देश छोड़ दूंगी या दूंगा। ताल ठोंक कर चुनाव के पहले दहाड़ते ये फ़िल्म -कला वर्ग के कुछ लोग चुनाव नतीजे आने पर पलट गए।लोगों ने देश से बाहर जाने वाली ट्रेनों और बसों के शेड्यूल बताए और उनका वादा याद दिलाया देश छोड़ने का तो मोहतरमा बिदक गयीं और बोलीं कि “मैंने ऐसा तो नहीं कहा था “।
अब कौन क्या छोड़ दे ,क्या पता ?मसलन दिल्ली में अगर आप हैं तो आपको बारहों महीनों काजू,पिस्ता ,बादाम,हलवा ,कम्बल, मनोरंजन, धरने के नाम पर आपको मिलता रहेगा ,बस आपको सिर्फ ये कहना है कि हम संविधान बचाने निकले हैं और चाहे जो भी कानून पास हो ,उसका विरोध करने निकले हैं ,अब ये आपको तय करना है कि आपको कौन सी डिश खानी है और कौन सा आर्केस्ट्रा सुनना है ।
यानी इसी देश मे रहना है और हर चुनाव में कुछ न कुछ छोड़ने की धमकी देनी है ।वो एक अजीम शायर की दुहिता हैं ,जो अपने पसंद का माहौल न होने पर देश छोड़ने की धमकी देती हैं जबकि इसके उलट नियामतों और अलामतों से महरूम होने के बाद भी इसी देश के शायर फरमाते थे कि
“कौन जाए जौक दिल्ली की गलियां छोड़कर “।
वैसे भी रैलियों और धरनों की राजधानी बन चुकी दिल्ली देश का दिल तो है मगर देश नुइन ।जिन घटनाओं से देश का कोई हिस्सा प्रभावित नहीं होता दिल्ली उन उबलती रहती है ।
धरना,अनशन,उपवास से आये दिन दिल्ली दो चार होती रहती है ।देश मे धरने -प्रदर्शन के लिये दिल्ली तो हमेशा चर्चा में रही है लेकिन अब तो कुछ ज्यादा ही ये सब हो रहा है।अब तो लोग मजाक में कहने लगे हैं अनशन वाले सड़ जी को अनशन से दिल्ली मिल गयी तो दिल्ली अनशन के लिये मुफीद है ,क्या पता इस अनशन से किसको क्या हासिल हो जाये।
छोड़ने की धमकियों से फिजायें पटी पड़ी हैं ,पाकितान की माली मदद कर रहे तुर्की की आर्थिक हालत इतनी खस्ता है कि वो अपने देश में बांड खरीदने पर नागरिकता देने की पेशकश कर रहा है ,लेकिन कोई जाने को तैयार नहीं है ।ये और बात है कि तुर्की के नागरिक अपना देश छोड़कर चुपचाप फ्रांस में घुस जाते हैं और फ्रांस उन्हें बीन बीन कर बाहर करता रहता है ।तुर्की दुनिया को तीसरे विश्वयुद्द की आग में झोंक देने के लिये ललकारता तो रहता है ,मगर खुद लड़ने से परहेज करता है और अपनी सुरक्षा के लिये नाटो गठबंधन पर निर्भर है ,नाटो देशों की नीतियों का विरोध और नाटो में बने रहने का लुत्फ ,क्या कहने ?
लोगबाग उम्मीद कर रहे हैं कि कब तुर्की के राष्ट्रपति आर्गेदान इस बात की घोषणा करें कि “नाटो ऐसा करे वर्ना मैं नाटो छोड़ दूंगा ।वैसे इधर लोगों ने बहुत कुछ सीख लिया है कि क्या क्या छोड़ना है ? सारा अली खान और दीपिका पादुकोण ने गांजा को वीड कहना छोड़ दिया है और उसे पीना भी छोड़ दिया है ।वरुण धवन जैसे लोग काफी मैच्योर हो गए हैं और अब कार्टून टाइप के रोल करने और मांगने के बजाय दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत केस में न्याय मांग रहे हैं ,देखते हैं कि कुली नंबर वन जैसी “डिसास्टर ऑफ द डिकेड” के लिये वो दर्शकों से कब माफी मांगेंगे और अपनी चंहु ओर उड़ रही खिल्ली से आहत होकर वो पापा के पैसों पर बनी फिल्मों में लीड रोल छोड़ने का ऐलान कब करते हैं।
लोगों ने बहुत कुछ पकड़ा और छोड़ा ,करन जौहर ने सार्वजनिक समारोहों में नाचना -गाना छोड़ दिया है और कंगना रनौत ने उन पर नेपोटिज़्म का आरोप लगाना छोड़ दिया है ।सड़क 2 फ़िल्म से विश्व रिकॉर्ड बनाकर आलिया भट्ट अभिभूत हैं कि नापसंद होने की वजह से ही सही उनके किसी काम को विश्व स्तर की पहचान तो मिली ।सुना है आजकल वो देश पर बहुत फोकस कर रही हैं ,मंत्रिमंडल और राजधानियों के नाम याद कर रही हैं ।करन जौहर न जाने कैसा स्कूल चलाते हैं जिसमे वो “स्टूडेंट आफ द ईयर”तो घोषित कर देते हैं लेकिन उनके विदयार्थियों के ज्ञान की अक्सर खिल्ली उड़ा करती है ,जैसे अभी वरुण धवन कुली नंबर वन के प्रोमो में पहिये वाले सुटकेस कंधों पर उठाए नजर आए । जौहर जी को आलिया और वरुण जैसे विद्यार्थियों के सामान्य ज्ञान पर थोड़ी मेहनत करनी चाहिये।वरना उनकी रेपुटेशन पर फर्क पड़ेगा ,जैसे कि हाल ही में जाह्नवी कपूर ने बताया कि गुंजन सक्सेना फ़िल्म देखने के बाद उनसे किसी ने जाकर कहा कि अच्छा है कि उनका ये विलक्षण अभिनय देखने के लिये उनकी माँ श्रीदेवी जीवित नहीं है ,वरना न जाने क्या हो जाता ।आशा है ,कपूर मैडम थोड़ा अभिनय भी सीखेंगी ,अन्यथा किसी दिन फ़िल्म इंडस्ट्री उनको छोड़ देगी ।
इधर दिल्ली से सटे एक शहर के लघुकथाकार ने कुछ दिन पहले सार्वजनिक तौर पर कहा है कि “इस लघुकथा की विधा “को आग लगा दो “इस पर फ़ेसबुकिया लघुकथा वाली मशहूर भौजी (जिन्होंने इस साहित्यिक विधा को आइटम नंबर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है )ने कहा है कि-
” यदि लघुकथा विधा को आग लगी तो मैं उसके साथ सती हो जाऊंगी “।
इस पर लघुकथा के नाम पर भोग विलास को बढ़ावा देने वाले ओल्ड मोंक ब्रांड पीने के प्रेमी एक धुरंधर सोशल मीडिया लघुकथा एक्टविस्ट ने “एट पीएम”पर “ओल्ड मोंक “शामिल करते हुए कहा है कि-
” यदि लघुकथा पर आंच आयी तो मैं लघुकथा लिखना छोड़ दूंगा ।लोग सोच के सिहर जा रहे हैं फिर साहित्य के आइटम नंबर हमको कहां पढ़ने को मिलेंगे ,अगर इस विधा को आग लग गयी तो ?
नेपथ्य में किशोर दा का गीत सुनाई पड़ रहा है
“मैं तेरा शहर छोड़ जाऊंगा “
कौन क्या पकड़ेगा और क्या छोड़ेगा ,ये सोच के मेरी बेचैनी बढ़ती ही जा रही है ।वैसे आप क्या छोड़ रहे हैं?