mahamanav bano

विश्व चेतना के बीज
हे मनुष्य ! अंकुरित होने दो
तुम्हारे निर्मल चित्त में
लहलहाती फ़सलों की
सरसराने दो, स्वेच्छा वायु से
बचाते रहो अपनी रौनक को
मूढ़ विचारों से,
बौद्धिक चेतना का
हरियाली तुम बनो
अनवरत साधना में
सत्य का अहसास करो

बंदी मत बन जाओ
असीम इच्छाओं के कारागार में,
यंत्रवत दौड़ो मत
अंधे-भाग-दौड़ में
कुछ भी नहीं मिलेगा तुमको
स्वार्थ-पाँव के तले कुचलाओगे
तुम ही हो,अमूल्य निधि
असीम संपत्ति,मोती-रत्न,
एकता के क्षणों में
वह आगार तुमको मिलेगी
निज़ धर्म के वचनों से
सुख-शांति तुम पाओ
समता,ममता,बंधुता,भाईचारा
मानवता के भूषणों से
महामानव बन जाओ।

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *