poem kaya dosh hai mera

मेरे विचारों में
शब्दों में
कौन सा विष है
जो हानि करता है दूसरों की
मैं न्याय की बात करता हूं
दलित की बात लिखता हूं

अग्रसर हूँ लोक कल्याण की दिशा में
समर्पित
लम्बी यात्रा
निरंतर श्रम हर दिन
थक जाता हूं
लेकिन आलस नहीँ करता

पैसा पाने की दौड़ नहीं है मेरी
लालायित हूं
कुछ कर दिखाने को
समर्पण की बगिया में
मीठा फल बनने का

संकल्प के साथ चलता हूं
समता – ममता, भाईचारा
लोकमंगलकारी वचनों को
उच्चारित करते हुए

सार्थक करना चाहता हूं जीवन
मै मानवधर्म को मानता हूँ
वैज्ञानिक सोच के साथ
विचारों का मेल करता हूं

क्या दोष है मेरा यदि
बुद्ध के सत्य,
अहिंसा, समभाव को
अपनाता हूं

सामाजिक समता और संतुलन के
महान विचारों के साथ
हर पल रहता हूं
क्या दोष है मेरा
क्यों मुश्किल है
अक्षरों का सांस लेना ।

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