मैं समाज से बोलता हूँ
दुनिया से बोलता हूँ
मनुष्य से बोलता हूँ
मेरे पास वह शक्ति नहीं
उन भेड़ियों से बोलने का
कुटिल तंत्रों के साथ लड़ने का
होने दो मुझ पर
इनके नादान परिहास
रचने दो मंत्र – तंत्र
मूढ़मतों का अट्टहास
मेरा भी अपनी जीवन शैली है
लोक मंगल का चिंतन – मंथन है
श्रम का साथी हूँ
एकांत का वासी हूँ
अंतरंग की पुकार मैं
जागरूक से सुनता हूँ
उऋण बनूँगा नहीं
अपना कुछ जरूर जोडूँगा
अक्षरों में मैं बोलता हूँ
अक्षरों में वास करता हूँ।