poem bolta hu mai

मैं समाज से बोलता हूँ
दुनिया से बोलता हूँ
मनुष्य से बोलता हूँ

मेरे पास वह शक्ति नहीं
उन भेड़ियों से बोलने का
कुटिल तंत्रों के साथ लड़ने का
होने दो मुझ पर
इनके नादान परिहास

रचने दो मंत्र – तंत्र
मूढ़मतों का अट्टहास
मेरा भी अपनी जीवन शैली है
लोक मंगल का चिंतन – मंथन है

श्रम का साथी हूँ
एकांत का वासी हूँ
अंतरंग की पुकार मैं
जागरूक से सुनता हूँ

उऋण बनूँगा नहीं
अपना कुछ जरूर जोडूँगा
अक्षरों में मैं बोलता हूँ
अक्षरों में वास करता हूँ।

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *