poem zindagi

अलग नहीं हो तुम कभी
मुझे से
न मैं हूँ कभी अलग तुम से
पारस्परिक सहयोग से
चलती है जिंदगी
अंतिम सांस तक
अकेला कोई जी नहीं सकता
सह अस्तित्व है प्रबल शक्ति।

भेद – विभेद की रचना में
अपने को अलग मानना,
अव्वल दर्जे का अहं दिखाना
अपने आप में एक छल है
भोग की लालसा में जीभ फैलाते
सत्य से दूर, भ्रम के आवरण में
जिंदगी एक झूठ है।

हम तोड़ेंगे असमानता की
ये दीवारें,
प्रहार करेंगे अन्यय, अधर्म पर
अनादि के पाखंड पर
मानव धर्म की ईजाद में
आने दें मुझसे

अंतरंग की ये हिलोरें
निकलने दें मेरे अंतरंग से
यथार्थ के अहसास,
आने दें तुझसे
अपने अंतर की वाणी
निकलने दें उस सत्य की

अभेद की भावधारा,
एक दूसरे के साथ
विचारों की गरिमा बांटते
श्रम के साथ चलेंगे हम
खिलेंगे जिंदगी के उपवन में
रंग – बिरंगे फूल
महक उठेगी सारी दुनिया
प्यार की सुगन्ध से।

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