poem manaw es jag me

कभी – कभार हम
अपनों से,
अपना समझनेवालों से भी
पराये हो जाते हैं

दूर से
दूर से हम देखे जाते हैं
यह नियति है जीवन की
एक दूसरे से मिलना,

सारे बंधनों से अलग हो जाना,
मानवीय भावनाओं को
विचारों के साथ जोड़कर
प्रगति पर दौड़ना,

यह एक तंतु है जीवन का।
भेद – विभेदों की इस दुनिया में
जीवन तंत्र ने
जीव – जीव के बीच में

अनगिनत रेखाएँ खीची हैं,
अनश्वर ये मेरे अक्षर भी
मेरे जन्म के आधार पर
जाति के मयानों में,

अवश्य तोले जाते हैं
अक्षरों की गिनती होती है
सुंदरता के आईने में
हर बात का एक पैमाना होता है,

हर मेधा का
अपना दृष्टिकोण चलता है
इस मानव जग के
हरेक बात की कीमत
तय हो जाती है दिमाग से।

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