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आज की दुनिया में
बहुत कम लोग
अपनी आँखों से देख पाते हैं
कई लोग, चेस्मा के बगैर
बाहर कदम भी नहीं ले पाते हैं,
कुछ लोग भविष्य को
देखने में सक्षम होते हैं,
दूसरे के अंतरंग में जाना,
यथार्थ का दर्शन करना
सरल नहीं है साधारण चक्षु से,
अधिकतर लोग दूसरों की आँखों से
दूर – दूर तक देखना चाहते हैं
ये भ्रम पैदा कर अपनी पुष्टि करते हैं
समर्पण, समभाव की बगिया में
खिलती हैं कई आँखें अपने अंदर
इस दुनिया के दर्शक होते हैं,
दार्शनिक होते हैं वे कलाकार होते हैं,
अपनी दूर दृष्टि से, सचेत करते रहते हैं
गलतियों पर निरंतर प्रहार करते हैं
यह उनकी वृत्ति व प्रवृत्ति होती है
पथ प्रदर्शन करते हैं वे इस समाज का
जो अकेले रहते हैं, चिंतन में डूबे रहते हैं
उनमें अधिकतर वे अकेले नहीं होते हैं
एक विशाल भाव भूमि को
वे अपने अंदर समेट लेते हैं,
नये आविष्कारों की दिशा में
निरंतर आगे बढ़ते रहते हैं
दुनिया के लिए अपना कुछ जोड़ते रहते हैं
संकुचित मन के लोगों का
छोटी आँखें होती हैं
प्रेम, बंधुता, भाईचारे का भरमार
वे देख नहीं पाते हैं।

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